मध्य प्रदेश की जेलों का इतिहास
वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य की जेल व्यवस्था, प्रमुखत: ब्रिटिश शासन में प्रारंभ की गई व्यवस्था का परिमार्जित रूप है। उल्लेखनीय है कि पहले ईस्ट इंडिया कंपनी तथा बाद में ब्रिटिश सरकार द्वारा भी जेल व्यवस्था में समय समय पर अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए। भारत के मध्य क्षेत्र की समकालीन रियासतों द्वारा भी इनमें से कुछ सुधारों को अपनाया गया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा वर्ष 1818 में तृतीय ब्रिटिश मराठा युद्ध की समाप्ति पर सागर एवं नर्मदा क्षेत्र (Saugor and Nerbudda Territories) मराठाओं से कब्जे में ले लिया गया।
वर्ष 1820 में इस क्षेत्र के 12 जिलों का एक संभाग निर्मित किया गया जिसका मुख्यालय जबलपुर था। तत्पश्चात वर्ष 1835-36 में इस क्षेत्र को नए बनाए गए उत्तर पश्चिम प्रांतों (North Western Provinces) का भाग बना दिया गया, जिसकी राजधानी उस समय आगरा में थी। इस प्रांत में वर्तमान उत्तर प्रदेश का अधिकांश भाग तथा वर्तमान मध्य प्रदेश का उपरोक्त क्षेत्र सम्मिलित था।
वर्ष 1836 में तत्कालीन गर्वनर जनरल द्वारा गठित Prison Discipline Committee 1838 के प्रतिवेदन में उल्लेखित जानकारी अनुसार उस समय सागर एवं नर्मदा क्षेत्र में 5 जिलों, बैतूल, जबलपुर, दमोह, सागर, सिवनी में कुल 07 जेलें कार्यरत थीं। उस समय ब्रिटिश शासित भारत के अन्य भागों में प्रचलित व्यवस्था की भांति इस क्षेत्र में भी तीन प्रकार की जेलें थीं। सिविल जेलें, आपराधिक (क्रिमिनल) जेलें तथा संयुक्त सिविल एवं क्रिमिनल जेलें। इनमें से सिवनी स्थित जेल केवल सिविल कैदियों के लिए थी जबकि दो जेलें आपराधिक कैदियों तथा शेष चार जेलें सिविल और आपराधिक दोनों बंदियों के लिए थीं। सागर को छोड़कर शेष सभी जेलों में 30 जून 1836 को अधिकृत क्षमता से कम बंदी निरूद्ध थे। उस समय में बंदियों की एक बड़ी संख्या, जेलों के बाहर सड़कों के निर्माण इत्यादि कार्य के लिए उपयोग में लाई जाती थी, जो निर्माण स्थल पर ही रहते थे। क्षेत्र की सबसे बड़ी जेल जबलपुर में तथा दूसरी सबसे बड़ी जेल सागर में स्थित थी। इन पांच जेलों का वार्षिक खर्च 39,969 /- रूपये था तथा इनमें कुल 1683 बंदी परिरूद्ध थे।
वर्ष 1854 में अंग्रेजों द्वारा क्षेत्र के 148 छोटे-बड़े रजवाड़ों/रियासतों के लिए सेंट्रल एजेंसी का गठन किया गया। एजेंसी के एजेंट का मुख्यालय इंदौर में था। 148 रजवाड़ों/रियासतों में इस एजेंसी के अंतर्गत ग्वालियर, इंदौर, भोपावर, धार, देवास, जावरा, ओरछा, दतिया, रीवा इत्यादि रियासतें थीं। सेंट्रल एजेंसी क्षेत्र दो भागों में विभक्त था पूर्वी भाग जिसमें बुंदेलखंड (ललितपुर जिले के पूर्व में था) जो सीधे ब्रिटिश शासन के अधीन था एवं पश्चिम क्षेत्र में बघेलखंड था जो (ललितपुर जिले के उत्तर- पश्चिम में था) जिसके अंतर्गत ग्वालियर, इंदौर, भोपावर और मालवा के छोटे राज्य थे। सेंट्रल इंडिया एजेंसी के लिए इंदौर में जेल का निर्माण भी किया गया था।
वर्ष 1857 में प्रथम भारतीय स्वंतत्रता संग्राम के दौरान भारत के अन्य राज्यों की भांति ही इस क्षेत्र की दमोह जेल पर विद्रोहियों द्वारा हमला किया गया, जिसके परिणामस्वरूप 244 बंदी इस जेल से भाग गए, जिनमें से 57 बंदियों को पुन: गिरफ्तार किया गया एवं शेष बंदी वर्ष 1860 तक गिरफ्तार नहीं हो सके।
वर्ष 1861 में Saugor and Nerbudda Territories को North West Provinces से हटाकर तत्कालीन नागपुर प्रोविंस के साथ मिलाकर Central Provinces के नाम से नया प्रांत गठित किया गया।
Central Provinces बनने से पहले नागपुर प्रांत का मुख्यालय नागपुर में था। नागपुर प्रोविंस में वर्तमान छत्तीसगढ़ की जेलें दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर वर्तमान मध्यप्रदेश राज्य की कुछ जेलें बालाघाट एवं छिंदवाड़ा तथा वर्तमान महाराष्ट्र राज्य के तत्कालीन चार जिले नागपुर, भंडारा, चांदा (वर्तमान चंद्रपुर ) तथा वर्धा शामिल थे। इस प्रकार नागपुर प्रॉविंस में कुल 09 जिले थे। नए राज्य का मुख्यालय नागपुर में ही रखा गया, साथ ही इसमें वर्तमान मध्यप्रदेश के निमाड़ जिले को वर्ष 1864 में शामिल किया गया। वर्तमान मध्यप्रदेश में अभी भी विद्यमान एवं कार्यरत कुछ जेल भवन इस अवधि में निर्मित किए गए थे यथा:- जिला जेल बैतूल 1817, केन्द्रीय जेल सागर 1846 ब्रिटिश शासन की केन्द्रीय भारत अभिकरण (Central India Agency) इंदौर में स्थित थी। इस हेतु अंग्रेजों द्वारा सेंट्रल इंडिया एजेंसी (C.I.A.) जेल (वर्तमान जिला जेल इंदौर) का निर्माण 1839 में किया गया, जिसका जेल भवन आज भी विद्यमान एवं उपयोग में है।
भारतीय जेलों के सुधार हेतु बनाई गई प्रथम जेल समिति 1836-38 की अनुशंसाओं के अनुरूप प्रदेश में केन्द्रीय जेल तथा नए जेल भवन निर्मित किए गए। इनमें से नागपुर एवं जबलपुर में स्थायी रूप से केन्द्रीय जेलें थीं जबकि रायपुर जेल कुछ अवधि तक केन्द्रीय जेल के रूप में रही परंतु बाद में इसे जिला जेल घोषित किया गया। नया प्रांत बनाने के बाद प्रांत का प्रशासन चीफ कमिश्नर के अधीन कर दिया गया।
वर्ष 1864 में एक संशोधन द्वारा भारतीय दंड विधान की धारा 53 में दंड के तौर पर जेलों में अन्य सजाओं के अलावा कोड़े मारने की सजा को सम्मिलित किया गया, जिसे प्रमुखत: संपत्ति संबंधी अपराधियों के लिए प्रावधानित किया गया।
भारतीय जेलों में बंदियों की ब्रिटिश जेलों की तुलना में काफी अधिक मृत्यु दर को देखते हुए गवर्नर जनरल लार्ड लॉरेंस द्वारा एक 10 सदस्यीय समिति का मार्च 1864 में गठन किया गया। समिति के अध्यक्ष मिस्टर ए.ए. रॉबर्टस थे तथा इसके सदस्यों में जेल महानिरीक्षक बंगाल प्रांत डॉ.एफ. जे. मौट तथा जेल महानिरीक्षक पंजाब प्रांत डॉ. सी. हाथवे सम्मिलित थे। समिति द्वारा अत्यंत शीघ्र अपनी रिपोर्ट अप्रैल, 1864 में प्रस्तुत की गई जिसमें बंदियों की बीमारी तथा असमय मृत्यु की स्थिति में सुधार हेतु 10 बिंदुओं पर अपने सुझाव दिए गए यथा, जेलों में अतिसंकुलता, बैरकों में खराब वायु संचार, खराब मल निस्तारण, खराब नाली व्यवस्था, अपर्याप्त कपड़े, जमीन पर शयन, पानी की कमी असमर्थ लोगों से अधिक श्रम, चिकित्सीय निरीक्षणों की कमी। इन बिंदुओं पर प्रतिवेदन दिया गया जिससे इन सुझावों को लागू करने के परिणामस्वरूप भारतीय जेलों की मृत्यु दर में सुधार हुआ।
वर्ष 1870 में पहली बार समस्त ब्रिटिश भारत की जेलों के लिए कारागार अधिनियम (3 अक्टूबर 1870 ) लागू किया गया। इसमें जेल अपराधों को सूचीबद्ध कर इनके लिए कोड़े मारने की सजा का प्रावधान धारा 48 में निहित किया गया।
वर्ष 1877 में कलकत्ता कॉंफ्रेंस हुई। तत्पश्चात 1888-89 में डॉ. वॉकर, डॉ. लेथब्रिज की समिति एवं कॉंफ्रेंस ऑफ एक्सपर्टस 1892 के प्रयत्नों तथा अनुशंसाओं के पश्चात वर्ष 1894 में इस अधिनियम में कुछ और बिंदु जोड़ते हुए कारागार अधिनियम, 1894 पारित हुआ जो आज भी भारत के अधिकांश राज्यों में एवं मध्यप्रदेश की जेलों में प्रमुख विधान के रूप में लागू है।
तत्पश्चात वर्ष 1897 में भारतीय सुधार गृह (सुधारात्मक विद्यालय) अधिनियम कम आयु के अपराधियों के लिए पारित हुआ जिसने जेलों की सुधारात्मक संस्था की सोच को आगे बढ़ाने में मदद की । इस सोच के फलस्वरूप केंद्रीय प्रांत में भी वर्ष 1914 में नरसिंहपुर में सुधार विद्यालय (बोर्स्टल स्कूल) प्रारंभ किया गया।
वर्ष 1901 में प्रथम बार इस प्रांत के जेल मैन्युअल का उल्लेख मिलता है, जिसे वर्ष 1926 में पुनरीक्षित/(Revise) कर अद्यतन किया गया।
केन्द्रीय प्रांतों ( सेंट्रल प्रोविंसेस ) राज्य की प्रथम उपलब्ध जेल मैन्युअल वर्ष 1901 के अनुसार प्रदेश में तीन केंद्रीय जेलें थीं, जिनमें से दो जबलपुर तथा नागपुर प्रथम श्रेणी की थीं जिनमें 1000 एवं अधिक बंदी रखे जा सकते थे। केन्द्रीय जेल, रायपुर द्वितीय श्रेणी की थी जिसमें 1000 से कम बंदी निरूद्ध करने की क्षमता थी। प्रदेश में कुल 19 जेलें थीं, जो तीन श्रेणियों केन्द्रीय जेल, जिला जेल तथा सहायक जेलों में विभक्त थीं। केन्द्रीय जेलें भी दो श्रेणियों, प्रथम वर्ग तथा द्वितीय वर्ग की थीं। जिला जेलें तीन श्रेणियों की थीं, प्रथम में जिला जेल होशंगाबाद, संभलपुर, आगर द्वितीय में जिला जेल बैतूल, भंडारा, बिलासपुर, चांदा, दमोह, नरसिंहपुर, तृतीय में जिला जेल बालाघाट, छिंदवाड़ा, मंडला, निमाड़, वर्धा थीं।
इस मैन्युअल के अनुसार चार ग्रेडों के जेलर तथा अधीनस्थ अधिकारियों के तीन प्रकार के पद थे, सहायक जेलर, उप जेलर तथा जेलर जिनमें से दो ग्रेड के सहायक जेलर थे। सुरक्षा संवर्ग में मुख्य वार्डर तीन ग्रेडों के तथ वार्डर भी तीन ग्रेड वेतन में पदस्थ होते थे। जेलों में उद्योग तथा मुद्रण (Printing) के लिए स्वीकृत स्टाफ था।
जेलों में अधिकारियों के स्वीकृत पद बंदी संख्या के लिए पर्याप्त थे किंतु सुरक्षा संवर्ग के पद बहुत कम थे, यथा केन्द्रीय जेल जबलपुर में जेलरों के कुल 10 पद थे जबकि प्रहरी के केवल 40, मुख्य प्रहरी के 6 तथा प्रमुख मुख्य प्रहरी का एक पद था।
वर्ष 1903 में जेलों के प्रशासन के लिए बरार (विदर्भ) क्षेत्र को सम्मिलित कर नये प्रांत का नाम केंद्रीय प्रांत एवं बरार (Central Provinces & Berar) रखा गया। बरार (विदर्भ) क्षेत्र, जो पहले हैदराबाद निजाम के अधीन था, उससे चार जिले अमरावती, अकोला, यवतमाल एवं बुल्ढाणा थे। वर्तमान मध्यप्रदेश में अभी भी विद्यमान एवं कार्यरत कुछ जेल भवन इस अवधि में निर्मित किए गए थे यथा:- पूर्व जिला जेल तथा वर्तमान में केन्द्रीय जेल होशंगाबाद 1872, केन्द्रीय जेल जबलपुर 1867, जिला जेल खंडवा 1873, जिला जेल बालाघाट 1875, केन्द्रीय जेल ग्वालियर 1879 (तत्कालीन सिंधिया रियासत की जेल) आदि।
मध्यप्रदेश की जेलों की वार्षिक रिपोर्ट- 1914 के अनुसार केन्द्रीय प्रांतों एवं बरार प्रदेश में कुल 22 जेलें थीं जिसमें से तीन केन्द्रीय जेलें जबलपुर, नागपुर एवं रायपुर तथा 18 जिला जेलें अकोला, अमरावति, बालाघाट, बैतूल, भंडारा, बिलासपुर, बुल्डाणा, चांदा, (वर्तमान चंद्रपुर) छिंदवाड़ा, दमोह, होशंगाबाद, मंडला, नरसिंहपुर, निमाड़, सागर, सिवनी, वर्धा, यवतमाल तथा सब जेल सिरोंचा थी। जिला जेल दमोह एवं वर्धा को 15 नवबंर 2014 में सब जेल के रूप में अवनत किया गया। इस अवधि में एकांत परिरोध की सजा दी जाती थी। कुल 104 बंदियों को एकांत परिरोध की सजा दी गई। वर्ष में जेलों से 10 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं, दो जेल के अंदर से एवं 8 बाहर कमान से हुईं। इस काल में जेल अपराधों की संख्या काफी अधिक होती थी, वर्ष में कुल 15,527 जेल अपराध हुए थे जिनमें आधे से ज्यादा जेल में कार्यों से संबंधित होते थे। इसी प्रकार प्रतिषिद्ध वस्तुओं से संबंधित कुल 655 अपराध दर्ज हुए। जबलपुर एवं नागपुर जेलों में (दूधशाला) गौशालाएं संचालित थीं। वर्ष के दौरान जिला जेल नरसिंहपुर को प्रदेश भर के किशोर बंदियों के लिए संवर्धित (Upgrade) कर बोर्स्टल स्कूल के रूप में प्रारंभ करने की स्वीकृति प्राप्त हुई। बोर्स्टल स्कूल में किशोर बंदियों के लिए बागवानी, सब्जी उत्पादन, बढ़ई, लोहार, डलिया बनाना, दर्जी आदि का प्रशिक्षण प्रदान किया जाना प्रारंभ किया गया। इस समय जेलों की कुल आवास क्षमता 6498 थी। वर्ष 1914 की औसत दैनिक बंदी संख्या 3847 थी जिसमें 3622 पुरूष बंदी तथा 224 महिला बंदी थीं। इस प्रकार अतिसंकुलता की स्थिति बिल्कुल नहीं थी। वर्ष 1914 के अंत में कुल 3922 बंदी थे जिसमें 3497 दंडित बंदी एवं 398 विचाराधीन बंदी तथा 27 सिविल बंदी थे। जेलों पर बंदियों की सुरक्षा एवं रखरखाव में कुल 4.11 लाख रूपये खर्च हुए एवं प्रति बंदी औसत खर्च लगभग 107 रूपये आता था। वर्ष के दौरान कुल 11 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं जिनमें से 03 जेल के अंदर से एवं 08 बाहर कमान से हुई थीं।
वर्ष 1921 में जेलों की संख्या पूर्व की भांति रही, इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया। वर्ष के दौरान प्रदेश में कुल 11 जिला जेलें अकोला, अमरावति, भंडारा, बिलासपुर, बुल्ढाणा, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, नरसिंहपुर, निमाड़, सागर, तथा यवतमाल में थीं तथा कुल 07 सब जेलें बालाघाट, बैतूल, चांदा, दमोह, मंडला, सिवनी, वर्धा थीं। सब जेल सिरोंचा को कम बंदी संख्या के कारण बंद कर दिया गया। इंडियन जेल कमेटी- 1919-1920 की अनुशंसाओं के आधार पर जेलों का केन्द्रीयकरण किया जाकर अभ्यासिक (आदतन) बंदियों को चुनी हुई विशेष जेलों में रखा गया। वर्ष 1920 में कुल 154 बंदियों को काले पानी की सजा हुई तथा वर्ष 1921 में यह घटकर कुल 84 बंदियों को ही काले पानी की सजा प्राप्त हुई। ब्रिटिश शासन काल में बोर्स्टल का विशेष महत्व देते हुए इसके बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। इस समय पुन: दंडित होने वाले बंदियों की (Recidivists) संख्या काफी अधिक होती थी। 5,778 बंदियों में से 1,167 बंदी जेलों में पुन: निरूद्ध हुए। वर्ष के दौरान कुल 11 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं जिनमें से 03 जेल के अंदर से एवं 08 बाहर कमान से हुई थीं। वर्ष में जेल अपराधों की संख्या में गिरावट आई । प्रदेश की जबलपुर जेल में टेंट के कपड़ों की सिलाई का कार्य बंदियों द्वारा किया जाता था। वर्ष 1920 की अपेक्षा वर्ष 1921 में 67 अधिक बंदियों की मुत्यु की जांच के लिए मेडिकल कमेटी बनाई गई। वर्ष में स्पेनिश फ्लू के कारण 23 बंदियों की मृत्यु हुई। वर्ष में पहली बार मध्यप्रदेश की जेलों में अधिकारियों (सहायक जेलर) की भर्ती के लिए विभागीय परीक्षा प्रारंभ की गई। विभागीय परीक्षा में 40 लोगों में से कुल 12 लोग सफल हुए। वर्ष के दौरान जेलों पर बंदियों की सुरक्षा एवं रखरखाव में कुल 7.51 लाख रूपये खर्च हुए एवं प्रति बंदी औसत खर्च लगभग 136 रूपये आया। वर्ष के दौरान कुल 10,875 जेल अपराध हुए। वर्ष 1921 की औसत दैनिक बंदी संख्या 4,729 थी। वर्ष 1921 के अंत में कुल 4,777 बंदी थे । पिछले 19 वर्षों में बंदियों की संख्या में इस वर्ष बढ़ोत्तरी हुई।
वर्ष 1926 में जेल मैन्युअल को अद्यतन किया गया जिसके अनुसार जेलों की श्रेणी में परिवर्तन कर बंगाल प्रांत की भांति जेलों की निर्धारित बंदी क्षमता के आधार पर जेलों का चार श्रेणियों में पुन: वर्गीकरण किया गया जो इस प्रकार है।
जिला जेल की श्रेणी |
सामान्य दैनिक बंदी संख्या/ क्षमता |
जिला जेल का नाम |
प्रथम श्रेणी |
500 अथवा इससे अधिक बंदी |
रायपुर, अमरावति, अकोला, |
द्वितीय श्रेणी |
300-500 |
बोर्स्टल स्कूल नरसिंहपुर |
तृतीय श्रेणी |
150-300 |
होशंगाबाद, सागर |
चतुर्थ श्रेणी |
50-150 |
छिंदवाड़ा, बिलासपुर, बैतूल, यवतमाल |
बालाघाट, बैतूल, चांदा, (वर्तमान चंद्रपुर) छिंदवाड़ा, दमोह, खंडवा, मंडला, सिवनी, वर्धा कुल 09 सब जेलें थीं।
वर्ष 1928 में द सेंट्रल प्रॉविंसेस बोर्स्टल एक्ट-1928 पारित किया गया जो अवयस्क अपराधियों के लिए पृथक संस्थाएं गठन तथा संचालित करने के संबंध में वर्ष 1897 के भारतीय सुधार गृह (सुधारात्मक विद्यालय) अधिनियम का अगला कदम था। इस अधिनियम के अंतर्गत वर्ष 1930 में राज्य शासन द्वारा नियम भी बनाए गए।
वर्ष 1929 में जेलों की कुल संख्या पूर्व की भांति रही। वर्ष के दौरान पूर्व की जिला जेलें बुल्ढाणा तथा भंडारा सब जेल के रूप में तथा पूर्व की सब जेलें बैतूल एवं छिंदवाड़ा जिला जेल के रूप में कार्यरत थीं। जेल उद्योगों का पुनर्गठन किया गया। जिला जेल बैतूल में बूढ़े एवं कमजोर बंदियों को प्रदेशभर से इकट्टा कर वहां की अच्छी जलवायु के कारण रखा गया। लखनऊ में दिसंबर के प्रथम सप्ताह में जेल महानिरीक्षकों का चौथा सम्मेलन (इससे पूर्व 1925 में ) आयोजित किया गया। 88 बंदियों को उनके स्वैच्छिक आवेदन पर जेल सेवा हेतु अंडमान भेजा गया। पूर्व दंडित बंदियों के पुन: जेल में आने की दर 18 प्रतिशत थी। केन्द्रीय जेल, जबलपुर में इस वर्ष विद्युतीकरण का कार्य संपन्न किया गया। दंडित बंदियों में से 1,594 दंडित बंदियों को उद्योग से संबंधित कार्य में लगाया गया। वर्ष में कुल 58 बंदियों की मृत्यु हुई जो पिछले वर्ष की तुलना में 19 अधिक थी। सबसे अधिक 10 टी.बी. के बंदी, निमोनिया से 10, तथा पेचिस से 08 बंदियों की मृत्यु हुई। रिहा हुए बंदियों की सहायता के लिए रिहा बंदी सहायता संस्था (Dischared Prisoners Aid Society) की जबलपुर शाखा के कायाकल्प के लिए 3000 /-रूपये प्रदान किए गए। स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं द्वारा जेल सुधार कार्य में काम करने की संख्या में काफी वृद्धि हुई।
वर्ष 1930 में जेलों की संख्या पूर्व की भांति रही। वर्ष के दौरान 02 केन्द्रीय जेल, 10 जिला जेल एवं 09 सब जेलें कार्यरत थीं। वर्ष में जेल विभाग को सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान अत्यधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। लगभग 4,000 से अधिक बंदी जेलों में प्रवेश हुए। इस वर्ष औद्योगिक मंदी के कारण जेलों से रिहा होने वाले बंदियों को रोजगार प्राप्त करने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। विभिन्न जेलों में अतिसंकुलता की स्थिति व्याप्त थी। वर्ष के दौरान शासन आदेशानुसार बंदियों को उनके मूल जीवन स्तर के आधार पर तीन श्रेणियों ए,बी, सी में बांटा गया। श्रेणियों के अनुसार बंदियों को जेलों में रखा जाने लगा। ए एवं बी श्रेणी के बंदियों को खाना पकाने एवं खाने हेतु पीतल के बर्तन प्रदान किए जाते थे। बंदियों की सुरक्षा एवं रखरखाव पर कुल 7,74, 826 /- रूपये का खर्च आया। प्रति बंदी औसतन खर्च 155/- रूपये था। वर्ष 1919 में केन्द्रीय जेल, जबलपुर में टेंट उद्योग प्रारंभ किया गया था जिसके अंतर्गत 1500 टेंट बेचे गए। वर्ष के दौरान 45 बंदियों की मृत्यु हुई जो पिछले वर्ष 58 की तुलना में कम थी। निमोनिया से 05 एवं पेचिस से 04 बंदियों की मृत्यु हुई। बंदियों हेतु जेलों की कुल आवास क्षमता 6,749 थी। वर्ष के अंत में कुल 5785 बंदी परिरूद्ध थे जिसमें से पूर्व में दंडित 761 बंदी ऐसे थे जो पुन: जेल में आए।
वर्ष 1932 में जेलों की संख्या पूर्ववत रही। वर्ष के दौरान द्वितीय सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ जिसके कारण जेलों में बंदी संख्या में अधिक वृद्धि हुई। आंदोलन के दौरान काफी संख्या में महिला बंदी जेलों में निरूद्ध हुईं जिन्हें केन्द्रीय जेल नागपुर में परिरूद्ध किया गया। अमरावती जेल में सी श्रेणी के एवं रायपुर, अकोला जेलों में बी श्रेणी के बंदियों को रखा जाता था। इस समय तक सामान्य बंदियों की मुलाकात के दौरान प्रतिषिद्ध वस्तुओं को रोकने के लिए कुछ जेलों में तार की जालियां लगा दी गईं थीं। जेल स्टाफ को अनुशासित रखने तथा बंदियों पर सख्त अनुशासन लागू करने हेतु जेल कर्मचारियों का हौसला बढ़ाया गया। जेल महानिरीक्षक को बंदियों के लिए 60 दिवस की विशेष माफी प्रदान करने हेतु अधिकृत किया गया। इस समय में बंदियों को अधिकतम परिहार उनकी मूल सजा के एक चौथाई तक दिया जाता था। जिन बंदियों का आचरण ठीक होता था उन्हें जनवरी माह में विशेष माफी दी जाती थी। रिहा बंदी सहायता संस्था (Dischared Prisoners Aid Society) को रिहा हुए बंदियों की सहायता के लिए शासन से अनुदान प्रदान किया जाता था। मार्च में शासन द्वारा 88 एकड़ शासकीय कृषि फार्म की भूमि नरसिंहपुर बोर्स्टल स्कूल को प्रदान की गई। वर्ष के दौरान 03 फरारी की घटनाएं हुईं जिसमें से दो बाहर कमान एवं एक जेल के अंदर से हुई। वर्ष के दौरान कुल 46 बंदियों की मृत्यु हुई जो पिछले वर्ष 84 की तुलना में कम थी। सबसे ज्यादा बंदी मृत्यु निमोनिया से 14 एवं पेचिस से 13 बंदियों की हुई। 29 बंदी कुष्ठ रोग से ग्रसित थे। वर्ष के अंत में कुल 5299 बंदी परिरूद्ध थे, जिसमें से 1064 पूर्व में दंडित बंदी थे जो पुन: जेल में आए। जेलों के संचालन में कुल 7,07,435/- रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 124 रूपये था जो पिछले 13 वर्षों में सबसे कम था। वर्ष 1910 से वर्ष 1932 तक जेलों की स्थिति में कुछ महत्वपूर्ण सुधार हुए जो इस प्रकार हैं।
1- पूर्व में सभी जेलों की पृथक बैरकों में सभी प्रकार के बंदी रखे जाते थे, तथा टी.बी. एवं कुष्ठ के रोगियों के लिए जेलों में पृथक जेलें तथा बूढ़े एवं कमजोर बंदियों तथा रोगियों को पृथक जेलों तथा अवयस्क बंदियों को बोर्स्टल संस्था जेलों में रखा जाने लगा था।
2- बंदियों के लिए पहला जेल विद्यालय एक दंडित बंदी द्वारा जबलपुर जेल में प्रारंभ किया गया था तथा बाद में बड़ी जेलों में शिक्षकों को पदस्थ किया गया।
3- तीन बढ़ई प्रशिक्षकों, कृषि कार्य में प्रशिक्षित सहायक जेलर तथा सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी को अष्टकोण अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया।
4- इस अवधि में जेलों में अनुशासन में भी काफी सुधार हुआ।
वर्ष 1933 में जेलों की संख्या पूर्ववत रही। आदतन अपराधियों की पिछले 10 वर्षों में प्रत्येक धीमी, परंतु निरंतर वृद्धि हो रही थी। लंबी अवधि के चुने हुए ऐसे दंडित बंदी, जिन्होंने अपनी लगभग आधी सजा भुगत चुकी हो, उन्हें सामान्य जीवन जीने देने का अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 1922 में परामर्शी मंडल (Advisory Boards) का गठन किया गया था, किंतु जिस उद्देश्य से परामर्शी मंडल बनाया गया उसकी पूर्ति नहीं हो रही थी। सभी जेलों में मंडल की बैठकें न होकर सिर्फ दो जेलों नागपुर एवं रायपुर में वर्ष में केवल दो बार हुईं। परामर्शी मंडल के समक्ष 265 प्रकरण रखे गए जिसमें से सिर्फ 33 बंदियों को छोड़े जाने हेतु अनुशंसा की गई तथा उसमें से 31 बंदियों को स्थानीय सरकार द्वारा छोड़ा गया। वर्ष के प्रारंभ में बोर्स्टल संस्था नरसिंहपुर में 200 लड़के परिरूद्ध थे। वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण जेलों में बंदियों द्वारा निर्मित उत्पादों के सामान की बिक्री में आ रही कठिनाई को देखते हुए ऐसी वस्तुओं के विक्रय के लिए नरसिंहपुर जेल के मुख्य द्वार पर एवं एक रेलवे स्टेशन पर, कुल 02 दुकानें खोली गईं। वर्ष के दौरान 67 बंदी मृत्युदंड की सजा प्राप्त एवं 83 बंदी काले पानी की सजा वाले थे। वर्ष में कुल 46 बंदियों की मृत्यु हुई जिसमें पेचिस से 03, निमोनिया से 10 तथा टी.बी. से 11 बंदियों की मृत्यु हुई। वर्ष के दौरान कुल तीन फरारियॉं हुईं, तीनों फरारी की घटनाएं बाहर कमान से हुई। बंदियों की सुरक्षा एवं रखरखाव पर वार्षिक कुल 6,48,859 /- रूपये व्यय हुआ। वर्ष के अंत में कुल 4931 बंदी जेलों में परिरूद्ध थे।
वर्ष 1934 में जेलों की संख्या पूर्व की भांति रही। वर्ष के दौरान 6990 बंदी जेल में आए जिनमें से 1348 बंदी लगभग 20 प्रतिशत बंदी एक्साइज एक्ट के थे। लंबी सजावधि वाले बंदियों को दूसरी दया याचिका प्रस्तुत करने का विशेषाधिकार प्रदान किया गया। वर्ष में कुल 04 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं चारों बंदी बाहर कमान से फरार हुए। वर्ष में 74 बंदियों को मृत्यु एवं 79 बंदियों को काले पानी की सजा प्राप्त हुई। वर्ष के दौरान 2169 जेल अपराध दर्ज किए गए जिसमें सबसे अधिक 782 अपराध जेल कार्य से संबंधित थे। वर्ष में कुल 70 बंदियों की मृत्यु हुई जिसमें सबसे अधिक निमोनिया से 10 तथा टी.बी. से 09 बंदियों की मृत्यु हुई। बंदियों की सुरक्षा एवं रखरखाव पर कुल 6,32,833 /- रूपये का वार्षिक खर्च हुआ। राज्य में जबलपुर एवं होशंगाबाद में पूर्व से रिहा बंदी सहायता संस्था (Dischared Prisoners Aid Society ) की शाखाएं कार्यरत थीं । नरसिंहपुर में इस संस्था की नई शाखा प्रारंभ की गई। संस्था के राष्ट्रीय संगठन सचिव द्वारा जबलपुर एवं नरसिंहपुर का दौरा किया गया। वर्ष के अंत में कुल 4971 बंदी परिरूद्ध थे।
वर्ष 1938 में प्रथम श्रेणी जिला जेल, अमरावती जेल को तृतीय श्रेणी के जिला जेल के रूप में अवनत कर किया गया। सभी महत्वपूर्ण बड़ी जेलों पर वायरलेस सेटों की स्थापना की गई जिनमें से केन्द्रीय जेल, नागपुर भी थी। अच्छे आचरण वाले बंदियों के लिए समाचार पत्र, पत्रिकाओं को उपलब्ध कराया जाना प्रारंभ किया गया। अच्छे आचरण वाले बंदियों के लिए धूम्रपान करने हेतु रियायत दी गई। कोढ़े मारने की सजा को सिर्फ सैन्य विद्रोह, बलवा करने वाले अथवा इसको बढ़ावा देने वाले बंदियों के लिए की गई। जेल में उद्योगों के संचालन के समाधन हेतु व्यापार एवं उद्योग के विशेषज्ञों की समिति गठित की गई। कैदियों के लिए विशेषाधिकार बनाए गए जिससे बंदियों के आचरण एवं अनुशासन में वृद्धि हुई इससे लगभग 300 जेल अपराधों में कमी आई। महिलाओं बंदियों के लिए कम वजन वाली साड़ी प्रदान किए जाने हेतु आदेश जारी किए गए। केन्द्रीय जेल नागपुर में रेडियो सेट की स्थापना की गई। वर्ष के अंत में कुल 4639 बंदी जेलों में परिरूद्ध थे।
वर्ष 1935 के गर्वमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में प्रांतीय सरकारों के गठन के पश्चात विभिन्न प्रांतों में सरकारों का गठन हुआ तथा राज्यों द्वारा जेलों के संबंध में अनेक प्रगतिशील कानून लागू किए गए इसी श्रृंखला में सेंट्रल प्रॉविसंस एण्ड बरार में वर्ष 1936 में सेंट्रल प्रॉविसंस एण्ड बरार सशर्त कैदियों की रिहाई अधिनियम,1936 पारित किया गया तथा वर्ष 1939 में सेंट्रल प्रॉविसंस एण्ड बरार बंदी संशोंधन अधिनियम, 1939 पारित हुआ जिसके द्वारा बंदी अधिनियम, 1900 में भाग 6- अ की धारा 93-अ, 93-ब, 93-स द्वारा बंदियों की वर्ष में 10 दिवस की अस्थाई मुक्ति का प्रावधान जोड़ा गया।
वर्ष 1946 में जेल मैन्युअल को पुन: अद्यतन किया गया तथा पूर्व में कार्यरत जिला जेल, बुल्ढाणा को सब जेल के रूप में अवनत कर दिया गया। इस प्रकार वर्ष 1946 में प्रांत में 2 केन्द्रीय जेल जबलपुर, नागपुर, तथा 10 जिला जेलें जिनमें प्रथम श्रेणी की रायपुर, अमरावति, अकोला, द्वितीय श्रेणी की जेल बोर्स्टल स्कूल नरसिंहपुर, तृतीय श्रेणी की होशंगाबाद तथा सागर एवं चतुर्थ श्रेणी की छिंदवाड़ा, बिलासपुर, बैतूल, यवतमाल,में कार्यरत थीं। 10 सब जेलें बालाघाट, बुल्ढाणा, चांदा, भंडारा, दमोह, खंडवा, मंडला, सिवनी, वर्धा, नरसिंहपुर में कार्यरत थीं।
वर्ष1946 के जेल मैन्युअल में भाग दो प्रथक से जोड़ा गया जिसके अंतर्गत 4 परिशिष्ट दिए गए। प्रथम परिशिष्ट में जेल उद्यान तथा खेती एवं बागवानी से संबंधित विभिन्न जानकारी परिशिष्ट 2 में वर्ष 1937-1946 में शासन एवं जेल महानिरीक्षक द्वारा जारी महत्वपूर्ण परिपत्रों/ पत्रों का सार संक्षेप में दिया है। परिशिष्ट 3 में जेल अभिलेख, पंजियां तथा रखरखाव के वार्षिक विवरणों को तैयार किया जाने के निर्देश जेल अभिलेखों के संधारण एवं नष्टीकरण की जानकारी, आकस्मिक व्यय विपत्र (बिल) तथा जेल पर होने वाले खर्चों के वर्गीकरण इत्यादि की जानकारी परिशिष्ट 4 में जेल विभाग में उपयोग में होने वाली पंजियों एवं जानकारियों के नमूने दिए गए हैं इस तरह से यह आज भी इसी रूप में है। इस अवधि में मध्यप्रदेश केवर्तमान में कुछ जेल भवनों का निर्माण किया गया जो आज भी कार्यरत हैं इस प्रकार हैं। सब जेल सरदार, 1903 सब जेल गरोठ, 1904 सब जेल सेंधवा, 1905 जिला जेल राजगढ़, 1905 सब जेल कन्नौद 1908, सब जेल नरसिंहगढ़ 1909, जिला जेल दतिया 1923, सब जेल बुढ़ार 1928, सब जेल तराना 1928, केन्द्रीय जेल बड़वानी 1929, केन्द्रीय जेल नरसिंहपुर, जिला जेल मंडला, जिला जेल रतलाम, सब जेल जोबट, जिला जेल छतरपुर 1930, जिला जेल टीकमगढ़ 1934, जिला जेल झाबुआ 1937, सब जेल नागौद 1938 , जिला जेल अलिराजपुर 1940
वर्ष 1941, 1942, 1943, 1944 एवं 1945 की वार्षिक रिपोर्ट में सिर्फ संख्यात्मक जानकारी मुद्रित की गई।
वर्ष 1040 में जेलों के संचालन में कुल 6,68,346 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 126 रूपये था
वर्ष 1941 में कुल 21 जेलें कार्यरत थीं। जिनमें 02 केन्द्रीय जेलें, 10 जिला जेलें एवं 09 सब जेलें थीं। जेलों के संचालन में कुल 7,53,885 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 138 रूपये था। वर्ष के अंत में कुल 5423 बंदी परिरूद्ध थे वर्ष में जेलों से 01 दंडित बंदी फरारी की घटना हुई। वर्ष में कुल 72 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1942 में जेलों की संख्या बढ़कर 22 हो गई। जिनमें 02 केन्द्रीय जेलें, 10 जिला जेलें एवं 10 सब जेलें थीं। जेलों के संचालन में कुल 9,63,270 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 134 रूपये था। वर्ष के अंत में कुल 6,893 बंदी परिरूद्ध थे। वर्ष में जेलों से 3 दंडित बंदी एवं 4 विचाराधीन बंदी कुल 7 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं। वर्ष में कुल 91 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1943 में जेलों की संख्या 22 ही रही। जेलों के संचालन में कुल 17,22,033 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 199 रूपये था। वर्ष के अंत में कुल 7,678 बंदी परिरूद्ध थे वर्ष में जेलों से 1 बंदी फरारी की घटना हुई।
वर्ष 1944 में जेलों की संख्या 22 ही रही। जेलों के संचालन में कुल 16,49,924 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 252 रूपये था। वर्ष के अंत में कुल 7,678 बंदी परिरूद्ध थे वर्ष में जेलों से 4 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं।
वर्ष 1945 में जेलों की संख्या 22 ही रही। जेलों के संचालन में कुल 17,22,033 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च ..... रूपये था। वर्ष के अंत में कुल 7,678 बंदी परिरूद्ध थे वर्ष में जेलों से 1 बंदी फरारी की घटना हुई।
वर्ष 1946 में कुल 22 जेलें कार्यरत थीं। जिनमें 2 केन्द्रीय जेलें, 10 जिला जेलें एवं 10 सब जेले थीं। 50 और उससे नीचे की जेल की आबादी के लिए ईंधन राशन का पैमाना 10 से 12 प्रति कैदी बढ़ा दिया गया था। बंदियों के लिए वर्ष में दो बार महत्वपूर्ण त्यौहारों पर विशेष खाद्य हलवा प्रदान करने का प्रावधान किया गया। प्रत्येक सिद्धदोष अपराधी को शासन द्वारा एक जोड़ी सूती चादर प्रदान करने की स्वीकृति प्रदान की गई। अच्छे आचरण एवं गैर आपराधिक राजनैतिक बंदियों को गर्मी के समय में रात्रि में बैरक के बाहर शयन की अनुमति प्रदान की गई। इस वर्ष सेंट्रल प्राविंसेंस एण्ड बरार संशोधन अधिनियम, 1939 के अंतर्गत भारत में पहली बार बंदियों को अस्थाई तौर पर जेल से छोड़े जाने अथवा पैरोल पर जाने का प्रावधान मध्यप्रदेश में ही किया गया था। प्रदेश की बड़ी जेलों पर 24 घंटे चिकित्सीय स्टाफ रखने का प्रावधान किया गया। जेलों के बाहर कार्य करने वाले बंदियों से लोहे की जंजीर की बेड़ी को हटाया जाकर लोहे का छल्ला (एंकल रिंग) बायें पैर में पहनने का प्रावधान किया गया। महिला बंदियों को अच्छी सुविधाएं प्राप्ति के उद्देश्य से सिर्फ केन्द्रीय जेलों पर रखने का प्रावधान किया गया। वर्ष 1946 के अंत तक प्रदेश की जेलों में 4622 बंदी परिरूद्ध थे।
वर्ष 1947 में आजादी मिलने के अवसर पर कुछ निश्चित श्रेणियों के बंदियों को शासन द्वारा विशेष रिहाई माफी दी गई जिसके अंतर्गत लगभग 1803 बंदियों को जेल से रिहा किया गया तथा कई बंदियों की मृत्यु की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया। वर्ष 1947 में जेलों में अनेक संशोधन किए गए जो इस प्रकार हैं।
1. सिद्धदोष बंदी अधिकारियों के उपदान (ग्रेच्युटी) को बढ़ाया गया।
2. जेल अधीक्षकों द्वारा बंदियों को प्रदान की जाने वाली सामान्य माफी दिवस 15 से बढ़ाकर 30 दिवस किया गया।
वर्ष 1947 में आजादी मिलने के पश्चात संपूर्ण भारतको विभिन्न श्रेणी के राज्यों में विभक्त किया गया। श्रेणी- अ में स्वतंत्रता पूर्व के ब्रिटिश शासित राज्य थे। पूर्व सेंट्रल प्राविंसेंस बरार की सीमाएं क्षेत्राधिकार वही रखते हुए वर्ष 1950 में इसका नाम मध्यप्रदेश कर दिया गया। श्रेणी-ब में भारत के जो बड़े राज्य थे उनको रखा गया। इन राज्यों में एक राज्य मध्यभारत था।
उस समय वर्तमान मध्यप्रदेश का क्षेत्रचार राज्यों में विभक्त था जो विभिन्न श्रेणियों में थे। पार्ट-अ सेंट्रल प्राविंसेंस एंड बरार, पार्ट-ब मध्यभारत जिसे मालवा संघ के नाम से भी जाना जाता है, इसे वर्ष 1948 में तत्कालीन 25 रियासतों को मिलाकर बनाया गया था जिसमें ग्वालियर व इंदौर मुख्य थे, बाकि मालवा क्षेत्र के छोटे-छोटे राज्य थे। पार्ट-स में भोपाल रियासत एवं विंध्यप्रदेश था। विंध्य प्रदेश वर्तमान मध्य पद्रेश के उत्तर में स्थित 35 रियासतों को मिलाकर बनाया गया था जिसमें प्रमुख रीवा, पन्ना, दतिया, ओरछा थे। वर्ष 1950 में सेंट्रल प्राविंसेंस एंड बरार का नाम बदलकर मध्यप्रदेश कर दिया गया।
वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की अनुशंसा अनुसार सेंट्रल प्राविंसेंस एंड बरार, मध्यभारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल स्टेट को मिलाकर मध्यप्रदेश का गठन किया गया। सेंट्रल प्राविंसेंस एंड बरार के नागपुर डिवीजन को तत्कालीन बॉम्बे राज्य वर्तमान महाराष्ट्र में एवं विंध्यप्रदेश की कुछ रियासतें को उत्तरप्रदेश में शामिल किया गया।
इस अवधि में विभिन्न रियासतों की जेलों की व्यवस्था में एकरूपता नहीं थी। उदाहरण के लिए होल्कर राज्य के इंदौर जेल नियम, 1947 अनुसार -होल्कर राज्य में चार प्रकार की जिला जेलें कार्यरत थीं। 1. केन्द्रीय जेल (इंदौर) 2. जिला जेलें प्रथम श्रेणी (मंडलेश्वर एवं गरोठ) तथा 3. जिला जेलें द्वितीय श्रेणी (महिदपुर एवं मंदसौर) 4. परगना जेलें (कन्नौद, खरगौन, आलमपुर, जीरापुर, पेटलावद, निसारपुर, नंदबाई, तराना,) एवं लॉकअप जेलें (सेंधवा, बड़वाहा, भीकनगांव, मनासा एवं भानपुरा में 01 माह तक की सजा प्राप्त दंडित एवं विचाराधीन बंदी रखे जाते थे तथा रामपुरा, सुनैल, नारायणगढ़, कंजरदा, देपालपुर, खातेगांव, सनावद, हातोद, में 15 दिवस तक सजा प्राप्त दंडित एवं विचाराधीन बंदियों को रखा जाता था)। परगना जेलों में 03 माह तक की सजा अवधि वाले दंडित एवं विचाराधीन बंदियों को रखा जाता था। जिला जेल प्रथम श्रेणी में 02 वर्ष तक की सजा वाले एवं जिला जेल द्वितीय श्रेणी में 01 वर्ष तक की सजा प्राप्त तथा मंडलेश्वर जेल में 05 वर्ष तक की सजा प्राप्त एवं गरोठ में 02 वर्ष तक की सजा प्राप्त दंडित एवं विचाराधीन बंदियों को रखा जाता था।
होल्कर राज्य में महानिरीक्षक जेल एवं उप महानिरीक्षक जेल दोनों का प्रावधान था तथा उपमहानिरीक्षक जेल, पदेन केन्द्रीय जेल अधीक्षक इंदौर भी होता था। उप महानिरीक्षक जेल को द्वितीय श्रेणी का विभाग प्रमुख भी बनाया गया था। होल्कर राज्य में चार श्रेणियों में, कुल 26 जेलें कार्यरत थीं जिनमें से वर्तमान मध्यप्रदेश में 10 जेलें अब अस्तित्व में हैं।
वर्ष 1950 में मध्य भारत राज्य बनने के पश्चात इस राज्य द्वारा कारागार अधिनियम, 1894 को Adoption Act- 1950 द्वारा अपनाया गया तथा वर्ष 1954 में मध्य भारत राज्य का अपना जेल मैन्युअल पारित किया गया जिसके अनुसार राज्य में जेलों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया। 01. केन्द्रीय जेल जिसमें लश्कर, (ग्वालियर) इंदौर, उज्जैन कुल तीन केन्द्रीय जेलें थीं (जिनमें से प्रत्येक की बंदी क्षमता 500 से अधिक थी)। 02. जिला जेल जिनको दो श्रेणियों में विभक्त किया गया, प्रथम श्रेणी की जिला जेल (सी.आई. ए. जेल इंदौर (बंदी क्षमता 300 से अधिक) एवं द्वितीय श्रेणी में धार, बड़वानी, राजगढ़, रतलाम, जावरा, (जिनकी बंदी क्षमता 100 से अधिक थी) । 03. सब जेल मंडलेश्वर, अलीराजपुर, झाबुआ, गरोठ, देवास, महिदपुर, कन्नौद, नरसिंहगढ़, खरगोन, तराना, अंबाह, सबलगढ़, सरदारपुर, शिवपुरी, मनासा, सेंधवा, भीकनगांव, नारायणगांव, आलोट, कुक्षी, ब्यावरा, बड़वाहा, भानपुरा, कुल 23 सब जेलें कार्यरत थीं।
वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की अनुशंसा अनुसार सेंट्रल प्राविंसेस एंड बरार, के एक हिस्से मध्यभारत, विंध्यप्रदेश, भोपाल रियासत तथा टोंक रियासत के सिरोंज उप संभाग को मिलाकर मध्य प्रदेश राज्य का गठन किया गया। सेंट्रल प्राविंसेस एंड बरार के नागपुर डिवीजन को तत्कालीन बॉम्बे राज्य, वर्तमान महाराष्ट्र में एवं विंध्यप्रदेश की कुछ रियासतों को उत्तरप्रदेश में शामिल किया गया।
वर्ष 1957 में राज्य में कुल 74 जेलें थीं। जबलपुर, रायपुर, इंदौर, ग्वालियर, रीवा, भोपाल, उज्जैन में कुल 07 केन्द्रीय जेलें, एक बोर्स्टल स्कूल नरसिंहपुर,19 जिला जेलें एवं 47 सब जेलें कार्यरत थीं। केन्द्रीय जेलों का संचालन स्थाई अधीक्षकों के अधीन था तथा अन्य जेलों के अधीक्षक सिविल सर्जन, सहायक सर्जन, सहायक चिकित्सा अधिकारी थे। इस दौरान मध्य भारत की ग्वालियर सर्किल में एक नई सब जेल का निर्माण मुरैना में किया जा रहा था तथा भिंड, भिलसा, गुना और मंदसौर में नई सब जेल के निर्माण के प्रस्ताव पर शासन द्वारा अनुमोदन प्रदान किया जा चुका था। जिला जेल छिंदवाड़ा में टी.बी. से ग्रस्त बंदियों को तथा दुर्बल एवं बुजुर्ग बंदियों, जिनकी ओर सतत ध्यान देने की आवश्यकता थी उन्हें जिला जेल बैतूल में रखा जाता था। कुष्ठ रोग के बंदियों को केन्द्रीय जेल रायुपर एवं जिला जेल इंदौर में रखा जाता था। इस समय प्रदेश की जेलों में विभिन्न जेल मैन्युअल उपयोग में थे। पूर्व के मध्य प्रदेश प्रांत एवं मध्य भारत का जेल मैन्युअल लगभग मिलता-जुलता था जबकि
भोपाल स्टेट एवं विंध्यप्रदेश का जेल मैन्युअल उत्तरप्रदेश के जेल मैन्युअल पर आधारित था। उपरोक्त सभी जेल मैन्युअलों का एकीकरण करने पर बल दिया गया। दिसंबर 1957 में त्रिवेंद्रम में अखिल भारतीय सुधारात्मक कार्य अधिकारियों का सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें मध्यप्रदेश के अधिकारी सम्मिलित हुए। वर्ष 1957 में प्रदेश की कुछ जेलों के उन्नयन का प्रस्ताव तथा कुछ जेलों में कम बंदी तथा अधिक खर्च होने के कारण उन्हें बंद करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया। जेलों के संचालन में कुल 31,80,550 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 492 रूपये था वर्ष के अंत में कुल 6,439 बंदी परिरूद्ध थे। वर्ष में कुल दैनिक औसत बंदी संख्या 6,472 थी। वर्ष में जेलों से 13 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं, 1 जेल के अंदर से एवं 12 बाहर कमान से हुईं। वर्ष में 14 दंडित, 19 विचाराधीन, कुल 33 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1958 में एक नई सब जेल, मुरैना में प्रारंभ हुई। भिंड में एक नई जेल निर्माणाधीन थी। विभिन्न जेल मैन्युअलों के एकीकरण का कार्य निरंतर प्रगति पर था। बंदी अधिनियम, 1900 का संशोधित स्वरूप में संपूर्ण मध्य प्रदेश में विस्तार किया गया, साथ ही बंदी पारिश्रमिक प्रदान करने के उद्देश्य से इंदौर में मॉडल जेल प्रारंभ करने हेतु प्रस्ताव शासन को प्रेषित किया गया। जबलपुर, नरसिंहपुर, रायपुर एवं जगदलपुर में विद्युतीकरण का कार्य किया गया। महाकौशल क्षेत्र की बड़ी जेलों में मेल नर्सों की नियुक्ति की गई। बंदियों की रिहाई के पश्चात देखभाल का कार्य सामाजिक कल्याण विभाग को सौंपा गया तथा प्रदेश की कुछ जेलों पर वेलफेयर ऑफिसर की नियुक्ति का प्रस्ताव शासन को भेजा गया। प्रहरियों के प्रशिक्षण की योजना पर विचार हेतु शासन को प्रस्ताव भेजा गया। बंदियों के जेल से रिहा होने के पश्चात उनके पुनर्वास, कल्याण तथा बंदियों की समस्याओं पर समाज का ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से ‘’बंदी हित दिवस ‘’ का आयोजन प्रारंभ किया गया। मध्यप्रदेश में प्रथम बंदी हित दिवस का आयोजन दिनांक 16 जनवरी, 1958 को केन्द्रीय जेल, जबलपुर में किया गया। इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के रोचक शारीरिक व्यायाम प्रदर्शन तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। समारोह का उद्देश्य शासन तथा जनता को इस बात से अवगत कराना था कि राज्य की जेलों में अब तक सुधार के कौन-कौन से उपाय किए गए हैं और बंदियों ने उनमें कितनी रूचि ली एवं कितनी निपुणता प्राप्त की है। बंदियों के कल्याण के लिए बंदी कल्याण कोष की स्थापना की गई। इस वर्ष जेलों के संचालन में कुल 35,56,961 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 488 रूपये था वर्ष के अंत में कुल 7,452 बंदी परिरूद्ध थे। वर्ष में कुल दैनिक औसत बंदी संख्या 7,282 थी। वर्ष में जेलों से 19 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं, जेल के अंदर से 9 एवं 10 बाहर कमान से हुईं। वर्ष में 25 दंडित, 9 विचाराधीन, कुल 34 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1959 में सब जेल, भिंड का निर्माण पूर्ण किया गया। प्रदेश में जेलों की कुल संख्या बढ़कर 76 हो गई थी। मध्य भारत क्षेत्र में मंदसौर, विदिशा, गुना में सब जेल हेतु भवन निर्माणाधीन थे। सुधारवादी प्रचारकों (Reformist Preachers) द्वारा महाकौशल क्षेत्र की सभी जेलों एवं अन्य क्षेत्रों की केन्द्रीय तथा जिला जेलों में बंदियों की नैतिक शिक्षा हेतु सभी धर्मों के मुख्य सिद्धांतों का समावेश कर नैतिक उपदेश प्रदान किया जाता रहा। महाकौशल क्षेत्र के सभी प्रकार के बंदियों को प्रति सप्ताह डेढ़ छटाक साबुन नहाने एवं वस्त्र धोने के लिए प्रदान किया जाता था। सिख, महिला बंदी , पाकशाला तथा सफाई कार्य में लगे बंदियों को अतिरिक्त साबुन एवं तेल प्रदान किया जाता था। राज्य शासन द्वारा 06 कल्याण अधिकारियों के पद प्रदेश की केन्द्रीय जेलों हेतु स्वीकृत किए गए। वर्ष के दौरान राज्य शासन द्वारा जिला न्यायाधीश को तीन माह में एक बार तथा अति. जिला न्यायाधीश एवं उप प्रभागीय न्यायाधीश को माह में दो बार जेलों का भ्रमण करने हेतु निर्देश जारी किए गए। सुधारवादी प्रचारक (Reformist Preachers) जो महाकौशल क्षेत्र की जेलों में नियुक्त थे अन्य क्षेत्रों की बड़ी जेलों में पदस्थ किए गए । प्रदेश भर में जेल अधिकारियों एवं प्रहरियों की वर्दी एक समान किए जाने के संबंध में कदम उठाया गया। दिनांक 01.01.1959 को संपूर्ण प्रदेश की जेलों हेतु तीन अधिनियम / नियम अमल में लाये गए। 1. बंदी अधिनियम- 1900 (1900 का तीसरा) , 2. केन्द्रीय प्रांत बोर्स्टल नियम (1926 का नौवां) 3. पूर्व में सिर्फ महाकौशल क्षेत्र के बंदियों को अस्थाई मुक्ति पर छोड़े जाने का प्रावधान था जिसे दिनांक 01.01.1959 को संपूर्ण मध्यप्रदेश में लागू किया गया। केन्द्रीय जेल, जबलपुर में प्रायोगिक तौर पर महिलाओं के लिए मॉडल जेल प्रारंभ की गई। जेल प्रहरियों को प्रशिक्षण प्रदान किए जाने की योजना शासन के समक्ष विचाराधीन थी। जेलों के संचालन में कुल 38,85,109 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 492 रूपये था वर्ष के अंत में कुल 8,074 बंदी परिरूद्ध थे। वर्ष में जेलों से 15 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं। वर्ष में 22 दंडित, 9 विचाराधीन, कुल 31 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1960 में सब जेल, मंदसौर प्रारंभ की गई। सब जेल, कुरवाई (जिला विदिशा) को बंद कर दिया गया तथा सब जेल, उदयपुरा (जिला रायसेन) को अस्थाई रूप से बंद किया गया। वर्ष 1960 में प्रदेश में कुल 75 जेलें कार्यरत थीं जिनमें 07 केन्द्रीय जेलें, 01 बोर्स्टल स्कूल ,19 जिला जेलें एवं 48 सब जेलें थीं। प्रदेश का द्वितीय बंदी हित दिवस 2-3 मार्च, 1960 को जिला जेल, भोपाल में राज्यपाल की मौजूदगी में आयोजित किया गया जिसमें लगभग 300 बंदियों द्वारा विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों , नृत्य, नाटक आदि में भाग लिया गया। नबंवर, 1960 में राष्ट्रीय बंदी कल्याण दिवस का आयोजन गया, बिहार में किया गया जिसमें मध्य प्रदेश के बंदियों द्वारा भाग लिया गया। जेल अधिकारियों को 6 माह के प्रशिक्षण हेतु टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई में भेजा गया। जेलों के संचालन में कुल 41,53,314 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 501 रूपये था वर्ष के अंत में कुल 8,785 बंदी परिरूद्ध थे। वर्ष में कुल दैनिक औसत बंदी संख्या 8,292 थी। वर्ष में जेलों से 24 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं, 12 जेल के अंदर से एवं 12 बाहर कमान से हुईं। वर्ष में 24 दंडित, 19 विचाराधीन, कुल 43 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1961 में सब जेल, कुक्षी को अस्थाई रूप से बंद किया गया। वर्ष 1961 में कार्यरत कुल जेलों की संख्या घटकर 74 हो गई थी। मध्यप्रदेश की जेलों के पुनर्गठन के उद्देश्य से नबंवर 1961 को प्रदेश की जेलों का पुन: वर्गीकरण किया गया। पूर्व की जेलों को 04 केन्द्रीय जेलों, 06 जिला जेलों प्रथम श्रेणी बोर्स्टल स्कूल सहित एवं 17 जिला जेलें द्वितीय श्रेणी तथा 47 सब जेल के रूप में विभक्त किया गया। उज्जैन,रीवा, भोपाल केन्द्रीय जेल से जिला जेल प्रथम श्रेणी के रूप में विभक्त किया गया। विभाग की नई संरचना एवं पदों की स्वीकृति की संख्या में दिनांक 16 मई, 1961 को परिवर्तन किया गया। प्रशिक्षण की आवश्यकता को देखते हुए प्रदेश में एक प्रशिक्षण संस्थान प्रथम बार केन्द्रीय जेल, जबलपुर में दिनांक 15.07.1961 को प्रारंभ किया गया। उक्त प्रशिक्षण संस्थान में 42 प्रहरी, मुख्य प्रहरी एवं 09 सहायक जेल अधीक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया। तृतीय पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत जेलों में बुजुर्ग एवं दुर्बल बंदियों, मानसिक रोग के बंदियों एवं टी.बी. तथा कुष्ठ रोग से ग्रस्त बंदियों के लिए पृथक से जेल वार्ड स्थापित किए जाने को तथा जेलों के स्तर बढ़ाए जाने को सम्मिलित किया गया। तृतीय पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत केन्द्रीय जेल ग्वालियर पर मानसिक बंदियों के लिए 65 बंदी की क्षमा का पृथक से वार्ड तथा जिला जेल इंदौर में टी.बी. से ग्रस्त बंदियों के लिए अलग से वार्ड बनाया गया। बंदी कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश की सभी बड़ी जेलों पर बंदी कल्याण कोष की स्थापना की गई। जेलों के संचालन में कुल 46,64,589 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 523 रूपये था वर्ष के अंत में कुल 8,626 बंदी परिरूद्ध थे, कुल दैनिक औसत बंदी संख्या 8,918 थी। वर्ष में जेलों से 14 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं, सभी घटनाएं जेलों के बाहर से हुईं। वर्ष में 24 दंडित, 10 विचाराधीन, कुल 34 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1962 में जेलों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। मध्य प्रदेश बंदी परीवीक्षा मुक्ति अधिनियम, 1954 को 01 फरवरी 1962 से संपूर्ण प्रदेश में विस्तारित किया गया। अपराधियों की परिवीक्षा अधिनियम, 1958 को अक्टूबर 1962 से प्रदेश में लागू किया गया। इस अधिनियम के अंतर्गत जेल महानिरीक्षक मुख्य परिवीक्षा अधिकारी है। मानसेवी परिवीक्षा अधिकारी प्रदेश के सभी जिलों में नियुक्त किए गए हैं। ग्वालियर केन्द्रीय जेल में साबुन उद्योग तथा रीवा जिला जेल में चर्म उद्योग (एम्युनिशन जूतों के लिए) प्रारंभ किए गए। वर्ष 1962 में सभी बंदियों के लिए पूर्व में दो दिवस हलवा प्रदान करने के प्रावधान को बढ़ाकर वर्ष में पांच बार गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, होली, ईद उल फितर एवं दशहरा के अवसर पर किया गया। इस वर्ष बंदियों के लिए साल में 19 जेल अवकाश निर्धारित किए गए। केन्द्रीय जेल ग्वालियर में साबुन उद्योग एवं जिला जेल रीवा में चमड़ा उद्योग प्रारंभ किया गया। जेलों के संचालन में कुल 49,88,923 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 558 रूपये था। वर्ष के अंत में कुल 9,238 बंदी परिरूद्ध थे। वर्ष में जेलों से कुल 21 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं, तीन जेल के अंदर से एवं अठारह बाहर से हुईं। वर्ष में 30 दंडित, 12 विचाराधीन, कुल 42 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1963 में दो सब जेलों, विदिशा एवं गुना को प्रारंभ किया गया तथा चार सब जेलों थांदला, खातेगांव, मनासा, नारायणगढ़ को बंद किया गया। 18 मुख्य प्रहरियों एवं 100 प्रहरियों को जेल प्रशिक्षण केंद्र, जबलपुर में प्रशिक्षण प्रदान किया गया। वर्ष के दौरान 10 सहायक जेलरों द्वारा भी प्रशिक्षण प्राप्त किया गया। वर्ष 1963 में मध्यप्रदेश की जेलों में जेल बैंड के प्रबंधन हेतु मध्यप्रदेश जेल बैंड नियम, 1963 लागू किया गया। जिला जेल, उज्जैन में कुष्ठ रोग के बंदियों के लिए नया वार्ड प्रांरभ किया गया। जेलों के संचालन में कुल 52,01,166 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 558 रूपये था। वर्ष के अंत में कुल 10,163 बंदी परिरूद्ध थे। वर्ष में जेलों से 16 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं, तीन जेल के अंदर से एवं तेरह (13) जेल के बाहर कमान से हुईं। वर्ष में 21 दंडित, 10 विचाराधीन, कुल 31 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1964 में आलोट, पेटलावद, बड़वाह, भानपुरा, नसरूल्लागंज, सिरोंज, व्यावरा, भीकनगांव, हातोद, खिलचीपुर, तथा आष्टा में स्थित सब जेलें बंद कर दी गईं। वर्ष के अंत में कुल जेलों की संख्या 61 थी। प्रथम श्रेणी जिला जेल भोपाल में दिनांक 15-16 फरवरी, 1964 को द्वितीय राज्य व्यापी बन्दी हित दिवस मनाया गया । राज्य के मुख्यमंत्री उसके मुख्य अतिथि थे। इस समारोह में राज्य की विभिन्न जेलों के बंदियों ने भाग लिया। इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के रोचक शारीरिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। यह अपने ढंग का निराला समारोह था। समारोह का उद्देश्य शासन तथा जनता को इस बात से अवगत कराना था कि राज्य की इन जेलों में अब तक सुधार के कौन-कौन से उपाय किए गए हैं और बंदियों ने उनमें कितनी रूचि ली एवं कितनी निपुणता प्राप्त की है। बंदियों के शारीरिक कौशल तथा सांस्कृतिक प्रदर्शन और उनके द्वारा जेल में बनाई गई वस्तुओं की सभी ने सराहना की। राज्य के मुख्य मंत्री महोदय ने स्वविवेकाधीन अनुदान से बंदी कल्याण निधि के लिए 1000 रूपये की राशि का दान दिया। बंदियों के पुनर्वास की दृष्टि से मध्यप्रदेश बंदी परिवीक्षाधीन सम्मोचन अधिनियम, 1954 तथा इसके अधीन बनाए गए नियम, दिनांक 02 अक्टूबर 1964 से संपूर्ण मध्यप्रदेश में लागू कर दिए गए जो इससे पहले केवल भूतपूर्व मध्य भारत क्षेत्र में ही लागू थे। उक्त अधिनियम के अंतर्गत बंदी, जिसने अपने कारावास के दंड का एक –तिहाई या परिहारों सहित पांच वर्ष की कुल कालावधि, जो भी कम हो, भुगत ली हो, शासन द्वारा अनुज्ञप्ति पर सम्मोचित किया जाने लगा। उक्त अधिनियम के तहत राज्य शासन द्वारा इस वर्ष 19 बंदियों को जेल से मुक्त किया गया। राज्य की जेलों में जहां भी लोहे के बर्तन उपयोग में लाये जाते थे, उनके स्थान पर पीतल के बर्तन दिए गए। वर्ष 1964 में 13 मुख्य प्रहरियों को तथा 115 प्रहरियों को जेल प्रशिक्षण केन्द्र, केन्द्रीय जेल, जबलपुर में प्रशिक्षण दिया गया। 17 सहायक जेलरों ने भी वर्ष में प्रशिक्षण प्राप्त किया। बंदियों को सुशिक्षित करने के लिए निरक्षरता उन्मूलन योजना चलाई गई । बंदीगण परीक्षा में आसानी से सम्मिलित हो सकें इस दृष्टि से राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, वर्धा ने जेलों के अन्दर ही परीक्षा लेने का निर्णय लिया। जेलों में बंदियों को नैतिक उपदेश देने के लिए 43 सुधारक उपदेशक नियुक्त किए गए जो रविवार या अन्य किसी सुविधा के दिन जेलों में जाते थे। वर्ष के अंत में कुल 10,455 बंदी परिरूद्ध थे। वर्ष में कुल दैनिक औसत बंदी संख्या 10,313 थी। जेलों के संचालन में कुल 59,26,190 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी औसत खर्च 574 रूपये था। वर्ष के दौरान 03 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं। वर्ष में 29 दंडित, 10 विचाराधीन, कुल 39 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1965 में सब जेलों बैरसिया तथा सीतामऊ को बंद कर दिया गया। वर्ष 1965 तक जेलों की संख्या घटकर कुल 59 रह गई थी। राज्य शासन द्वारा 03 उप जेलर, 21 मुख्य प्रहरी एवं 124 प्रहरियों के पदों की स्वीकृति प्रदान की गई। मुख्य प्रशिक्षक तथा प्रशिक्षण का एक-एक पद स्थाई किया गया। मध्य प्रदेश राज्य के गठन के पश्चात मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 1959 में सुरक्षा की दृष्टि से सभी जिला जेलों के निरीक्षण तथा सुझावों के लिए समितियां गठित की गई। समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में पुराने मध्यभारत, विंध्य प्रदेश, तथा भोपाल क्षेत्र की जेलों में फरारी की अत्यधिक घटनाओं का कारण उचित जेल भवन न होना बताया गया। अनेक स्थानों पर जेल भवन के साथ ही कर्मचारी आवास भवन बनाए जाएं। जेलों में फ्लश टाइप लैट्रिंग का सुझाव विचारणीय था ताकि जेलों में सफाई कार्य करने वाले बंदियों में अपमान की भावना न आए। जेलों के संचालन में कुल 67,91,184 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी औसतन खर्च 625 रूपये था। वर्ष के अंत तक जेलों में कुल बंदियों की संख्या बढ़कर 11,397 हो गई थी। वर्ष के दौरान कुल 15 फरारी की घटनाएं हुईं जिसमें से 03 जेल के अंदर से एवं 12 जेल के बाहर से हुईं। वर्ष में 28 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1966 में न तो कोई जेल बंद की गई और न ही कोई जेल खोली गई। वर्ष के अंत तक कुल जेलों की संख्या 59 ही रही। भारत पर पाकिस्तानी हमले के समय देश की संकटकालीन स्थिति के समय जहां देश के प्रत्येक नागरिक ने खाद्यान्न की बचत में योग दिया वहां प्रदेश की विभिन्न जेलों के अधिकांश बंदियों ने भी स्वेच्छा से इस अभियान में शासन आदेश के अंतर्गत सक्रिय रूप से भाग लिया और सप्ताह में एक समय का भोजन त्यागकर तत्कालीन प्रधान मंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की अपील को साकार बनाया। जेलों के संचालन में कुल 71, 02, 027 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 585 रूपये था। वर्ष के अंत में कुल बंदियों की संख्या बढ़कर 12,386 हो गई थी। वर्ष में बंदियों की कुल दैनिक औसत संख्या 12,125 थी। वर्ष के दौरान जेलों से 12 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं जिसमें से 01 जेल के अंदर से एवं 11 जेल के बाहर से हुईं। वर्ष में कुल 45 बंदियों की मृत्यु हुई।
वर्ष 1967-68 में न तो कोई जेल बंदी की गई और न ही कोई जेल खोली गई। वर्ष में जेलों की संख्या 59 रही। वर्ष 1966 तक वार्षिक प्रशासन प्रतिवेदन केलेंडर वर्षवार बनाया जाता था किंतु वर्ष 1967 से वित्तीय वर्षवार बनाया जाने लगा। वर्ष में नियमित पाठयक्रम में 7 सहायक जेलरों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया एवं प्रत्यासमरण (Refresher) पाठ्यक्रम में 6 सहायक जेलरों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। इस अवधि में नियमित पाठ्यक्रम में 43 प्रहरी वर्ग ने एवं प्रत्यास्मरण पाठ्यक्रम में 55 प्रहरियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। 26 जनवरी, 1968 को 'गणतंत्र ' दिवस के अवसर पर राज्य शासन ने प्रदेश के सभी दंडित बंदियों की सजा में 10 दिवस की विशेष छूट प्रदान की जिसके फलस्परूप प्रदेश की विभिन्न जेलों से 347 बंदी मुक्त हुए। एकीकृत जेल मैन्यअुल का बंदियों के भोजन संबंधी एकीकृत नियमों का अध्याय दिनांक 15.03.1968 से सारे प्रदेश के बंदियों को लागू किया गया।
मध्य प्रदेश शासन जेल विभाग के आदेश क्रमांक 217/2009/3/जेल, दिनांक 27.01.1968 द्वारा मध्य प्रदेश जेल सुधार समिति का गठन हुआ जिसमें निम्न सदस्य थे:-
- श्री ब्रजेश्वर शरण सिंह, विधायक अध्यक्ष
- श्री केजुराम, विधायक सदस्य
- श्री प्रतापलाल बिसेन, विधायक सदस्य
- श्री रायसिंह भदौरिया विधायक सदस्य
- श्री जगदीश प्रसाद गुप्त,विधायक सदस्य
- श्री जगदीश प्रसाद वर्मा ,विधायक सदस्य
- श्री लालमन सिंह, सदस्य, विधानसभा सदस्य
- उप सचिव, जेल विभाग सदस्य
- जेल महानिरीक्षक सदस्य
- मुख्य परिवीक्षा अधिकारी, भोपाल कार्यवाहक सचिव
उक्त समिति द्वारा शासन को निर्धारित निम्नलिखित विषयों पर अपने सुझाव प्रस्तुत करने थे:-
1. जेलों में बंदियों को पारिश्रमिक देने की योजना।
2. जबलपुर केन्द्रीय जेल में मुद्रणालय खोलना।
3. लम्बी अवधि के सजा वाले बंदियों को शाला वाहक काम पर लगाना।
4. जेल भवनों की त्रुटियों को दूर करना तथा जेल भवनों का विस्तार।
5. जिला मुख्यालय पर (जहां जेल नहीं है) नये जेल खोलना, जैसे सीधी, सतना, शहडोल, दुर्ग, शाजापुर, सिवनी, देवास, पन्ना व खरगोन।
6. आदिवासी बंदियों के लिए जगदलपुर व अन्य द्वितीय श्रेणी जेल का स्तर ऊंचा उठाना।
7. जेल कर्मचारियों को किराया-मुक्त आवास के बदले में मकान किराया देना तथा कर्मचारियों के लिए आवास व्यवस्था।
8. जेल कर्मचारियों को सप्ताह में एक दिन छुट्टी देना।
9. जेलों में बंदियों की अधिक बढ़ती संख्या को देखते हुए उन जेलों के प्रशासन के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति।
10. किशोर बंदी वयस्क बंदियों के संपर्क में न आएं इस दृष्टि से किशोर संस्था नियमों में सुधार।
11. यदि आवश्यक समझा जावे तो बंदियों के खुराक व वस्त्र प्रावरण के परिमाण में परिवर्तन।
12. कृषि प्रशिक्षण हेतु किसी जेल का चुनना, जेलों में कृषि योग्य भूमि का विस्तार।
13. परिवीक्षा तथा बंदी हित कार्य का विस्तार।
14. जेलों में फ्लश टट्टियों व मलकूप।
15. जेल सुधार समिति अध्यक्ष की सम्मति से अन्य सुझाव।
समिति ने मार्च 1968 में जिला जेल, भोपाल का भ्रमण किया व 21 मार्च 1968 की बैठक में मध्यप्रदेश की जेलों के भ्रमण संबंधी चर्चा की। वर्ष 1967-68 में जेलों के संचालन में कुल 93, 65, 641 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 700 रूपये था वर्ष के अंत में कुल बंदियों की संख्या बढ़कर 13,674 हो गई थी। वर्ष में बंदियों की कुल दैनिक औसत संख्या 13,368 थी। वर्ष में परिवीक्षा पर 168 बंदियों को मुक्त किया गया। वर्ष के दौरान जेलों से 20 दंडित बंदी फरारी की घटनाएं हुईं जिसमें एक जेल के अंदर से तथा 19 जेल के बाहर से हुईं। वर्ष में कुल 77 बंदियों की मृत्यु हुई।
मध्यप्रदेश पुनर्गठन के पश्चात विभिन्न रियासतों तथा सेंट्रल प्रॉविंसेस एंड बरार (पूर्व मध्य प्रांत की जेल व्यवस्थाओं को संयोजित कर नई समेकित जेल प्रणाली हेतु नया जेल मैन्युअल बनाने में लंबा समय व्यतीत हुआ। वर्ष 1968 में नया जेल मैन्युअल बनाया गया। नया जेल मैन्युअल लागू होने के समय प्रदेश में जेलों की कुल संख्या 59 थी जो 05 सर्किलों में विभाजित थीं।
1.जबलपुर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
जबलपुर |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
3 |
बोर्स्टल स्कूल, नरसिंहपुर, रीवा, सागर |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
3 |
छिंदवाड़ा, छतरपुर, दमोह |
सब जेल |
4 |
बालाघाट, मंडला, नरसिंहपुर, पन्ना |
2 रायपुर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
रायपुर, |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
2 |
बिलासपुर, जगदलपुर |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
2 |
रायगढ़, अबिंकापुर, |
सब जेल |
4 |
बैकुंठपुर, जशपुर, खैरागढ़, राजनांदगांव |
3 ग्वालियर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
ग्वालियर, |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
|
--- |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
2 |
दतिया, टीकमगढ़ |
सब जेल |
5 |
भिंड, मुरैना, सबलगढ़, शिवपुरी, गुना |
4 इंदौर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
इंदौर |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
1 |
उज्जैन |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
7 |
अलिराजपुर, झाबुआ, धार, खंडवा, रतलाम, इंदौर, बड़वानी, |
सब जेल |
12 |
देवास, कन्नौद, मंदसौर, गरोठ, जावरा, जोबट, सरदारपुर, खरगोन, सेंधवा, मंडलेश्वर, महिदपुर, तराना |
5 भोपाल सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
--- |
--- |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
1 |
भोपाल |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
3 |
होशंगाबाद, बैतूल, राजगढ़, |
सब जेल |
6 |
विदिशा, सीहोर, रायसेन, बेगमगंज, बरेली, नरसिंहगढ़ |
वर्ष 1969-70 में 28 फरवरी 1970 से शहडोल में उप-जेल प्रारंभ की गई। वर्ष के अंत में विद्यमान जेलों की कुल संख्या 60 थी। मध्यप्रदेश में पूरे गांधी शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में राज्य शासन द्वारा बंदियों को जो विशेष माफी दी गई उसके फलस्वरूप 1451 बंदी जेलों से मुक्त हुए एवं 18, 629 बंदी विशेष माफी से लाभान्वित हुए। दिनांक 2 अक्टूबर 1969 को जेल से मुक्त हुए प्रत्येक बंदी को संक्षिप्त '' गांधी आत्मकथा'' नामक पुस्तक की एक प्रति भी दी गई। इसके अतिरिक्त दिनांक 2 अक्टूबर 1969 को प्रदेश की जेलों में प्रत्येक बंदी को, जिसमें विचाराधीन बंदी भी सम्मिलित थे, विभाग द्वारा तैयार किया गया विशेष फोल्डर, जिस पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का छाया चित्र एवं संदेश अंकित था, दिया गया।
प्रदेश व्यापी तृतीय बंदी हित दिवस दिनांक 28 फरवरी व 2 मार्च 1970 को जिला जेल, प्रथम श्रेणी, भोपाल में आयोजित किया गया, जिसके मुख्य अतिथि प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री श्यामाचरण शुक्ल थे। माननीय मुख्य मंत्री महोदय ने इस अवसर पर दंडित बंदियों को सात से पन्द्रह दिवस की विशेष छूट प्रदान करने के साथ-साथ बंदियों कल्याणार्थ बंदी हित कोष (Prisoners Welfare Fund) में रूपये एक हजार का अनुदान प्रदान किया। इस अवसर पर जेल मंत्री महोदय डॉ. देवी सिंह ने अपने शुभ संदेश में विचार प्रकट करते हुए सूचित किया कि ''बंदी हित दिवस का मुख्य उद्देश्य बंदियों में आत्म सम्मान की भावना पैदा करना तथा समाज में बंदियों के प्रति विश्वास एवं सहानुभूति जागृत करना है। वर्ष 1969-70 में कुल 14 सहायक कारापालों, 7 मुख्य प्रहरी एवं 85 प्रहरियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। दिनांक 26 जनवरी, 1970 को गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में महिला मंडल, बस्तर द्वारा आयोजित सब्जी प्रतियोगिता में प्रथम श्रेणी जिला जेल, जगदलपुर को द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ था। केन्द्रीय जेल, इंदौर द्वारा दिनांक 29 जनवरी 1970 से 45 दिवस के लिए आयोजित बापू मेला एवं औद्योगिक विकास प्रदर्शनी, इन्दौर में भाग लेने पर केन्द्रीय जेल, इन्दौर को बापू मेला एवं प्रदर्शनी, गांधी हॉल प्रांगण, इन्दौर शहर युवक कांग्रेस द्वारा द्वितीय पारितोषिक में एक शील्ड तथा एक प्रशंसा-पत्र प्राप्त हुआ। जेलों के संचालन में कुल 1,12,82,625 रूपये खर्च हुए प्रति बंदी खर्च 865 रूपये था। वर्ष के अंत में कुल बंदियों की संख्या बढ़कर 12,639 हो गई थी। वर्ष में बंदियों की कुल दैनिक औसत संख्या 13,038 थी। वर्ष के दौरान जेलों से 21 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं।
वर्ष 1970-71 में जेलों की संख्या पूर्ववत रही। वर्ष के दौरान कुल 7 सहायक कारापालों, 9 मुख्य प्रहरी तथा 65 प्रहरियों ने जेल प्रशिक्षण केन्द्र, केन्द्रीय जेल, जबलपुर में प्रशिक्षण प्राप्त किया। जिला जेल उज्जैन द्वारा जिला स्तर पर आयोजित योजना प्रदर्शनी में जेल निर्मित वस्तुओं का स्टॉल लगाकर भाग लेने तथा सहयोग प्रदान करने के फलस्वरूप जिला दंडाधिकारी, उज्जैन ने एक प्रशंसा प्रमाण-पत्र प्रदाय किया। 26 जनवरी, 1971 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर जिलाध्यक्ष, बस्तर द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में जिला जेल, जगदलपुर ने भाग लिया और द्वितीय पुरस्कार प्राप्त किया। जेलों के संचालन में कुल 1,14,35,985 रूपये खर्च हुए, प्रति बंदी खर्च 828 रूपये था। वर्ष के अंत में कुल बंदियों की संख्या बढ़कर 13,591 हो गई थी। वर्ष में बंदियों की कुल दैनिक औसत संख्या 13,803 थी। वर्ष के दौरान जेलों से 13 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं। वर्ष 1971-72 में जेलों की संख्या पूर्ववत 60 रही। जनता को समस्त सुधारात्मक नवीन प्रयोगों से अवगत कराने हेतु, जो प्रदेश की विभिन्न जेलों में बंदियों के कल्याणार्थ चल रहे हैं, राजधानी की जिला जेल, प्रथम श्रेणी भोपाल में चतुर्थ प्रान्तीय बंदी हित दिवस दिनांक 3 व 4 अप्रैल 1971 महामहिम राज्यपाल श्री सत्यनाराणसिंह के मुख्य अतिथित्य में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर राज्यपाल महोदय ने कार्यक्रम से प्रभावित होकर सुझाव दिया कि अन्य प्रदेश भी इससे प्रेरणा लेकर ऐसे कार्यक्रम प्रतिवर्ष आयोजित करें जिससे बंदियों को सुधार की दिशा में आगे बढ़ा जा सके। राज्यपाल महोदय ने बंदियों के कल्याणार्थ बंदी हित कोष में एक हजार रूपये का अनुदान प्रदान करने की घोषणा की। इसी अवसर पर तत्कालीन जेल मंत्री डॉ. देवी सिंह ने माननीय मुख्यमंत्री की ओर से बंदी हित कोष में एक हजार रूपये अनुदान प्रदान करने की घोषणा की। राज्य शासन द्वारा इस अवसर पर प्रदेश के समस्त बंदियों को सात से पन्द्रह दिवस की विशेष छूट प्रदान की गई। वर्ष में कुल 12 सहायक कारापालों, 8 मुख्य प्रहरी तथा 75 प्रहरियों ने जेल प्रशिक्षण केन्द्र, केन्द्रीय जेल, जबलपुर में प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्ष 1971-72 में परिवीक्षा मंडल की पांच बैठकें हुईं, जिनमें 287 बंदियों के प्रकरणों पर विचार किया गया व 93 बंदियों को मुक्त करने के शासन आदेश प्राप्त हुए। जेलों के संचालन में कुल 1,23,68,334 रूपये खर्च हुए, प्रति बंदी खर्च 879 रूपये था। वर्ष के अंत में कुल बंदियों की संख्या बढ़कर 14,469 हो गई थी। वर्ष में बंदियों की कुल दैनिक औसत संख्या 14,062 थी। वर्ष के दौरान जेलों से 18 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं।
वर्ष 1972-73 के अंत में विद्यमान जेलों की संख्या 60 रही। स्वतंत्रता की 25 वीं जयन्ती के अवसर पर 15 अगस्त 1972 को राज्य-शासन ने प्रदेश के कतिपय श्रेणी के बंदियों को एक माह से एक वर्ष तक की विशेष छूट स्वीकार की जिसके फलस्वरूप प्रदेश की विभिन्न जेलों से कुल 1,113 बंदी, जिनमें 20 महिलाएं भी सम्मिलित थीं, मुक्त हुए। इसी प्रकार गांधी जयंती के उपलक्ष्य में दिनांक 02 अक्टूबर, 1972 को प्रदेश के समस्त बंदियों को उनकी सजा में शासन द्वारा दस दिवस की विशेष छूट प्रदान की गई।
आत्मसमर्पित बंदियों के प्रकरणों की सुनवाई केन्द्रीय जेल, ग्वालियर में बनाए गए न्यायालयों में की गई। वर्ष में 54 बंदियों को सजा हुई, जिसमें एक मृत्यु-दंडित बंदी भी सम्मिलित था। पुनर्वास की दृष्टि से, सजा होने पर इन बंदियों को खुले जेल में रखने की योजना शासन के समक्ष विचाराधीन थी। सन् 1972-73 में परिवीक्षा मंडल की सात बैठकें हुईं जिसमें 431 बंदियों के प्रकरणों पर विचार किया गया व 133 बंदियों को मुक्त करने के शासन आदेश प्राप्त हुए। जेलों के संचालन में कुल 1,42,39,601 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 976 रूपये था वर्ष के अंत में कुल बंदियों की संख्या बढ़कर 14,991 हो गई थी। वर्ष में बंदियों की कुल दैनिक औसत संख्या 14,585 थी। वर्ष के दौरान जेलों से 23 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं।
वर्ष 1973-74 में 1 नवम्बर, 1973 से आत्म-समर्पित बंदियों के लिए मुंगावली, जिला गुना में नवजीवन शिविर (खुली जेल) प्रारंभ किया गया। इस प्रकार वर्ष के अंत में जेलों की संख्या बढ़कर 61 हो गई थी। बंदियों एवं उनके परिवारों को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा छोटे उद्योग जेल के भीतर शुरू करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदाय करने की एक नवीनतम योजना शासन की स्वीकृति लेकर प्रथमत: प्रथम श्रेणी जिला जेल, उज्जैन में फरवरी 1974 से लागू की गई। योजना के अंतर्गत साबुन, अगरबत्ती,नैपकिन्स तथा छोटे टॉवेल्स बनाने का कार्य किया गया। वर्ष 1973-74 में परिवीक्षा मंडल की पांच बैठकें हुईं जिनमें 324 बंदियों के प्रकरणों पर विचार किया गया और 83 बंदियों को मुक्त करने के शासन से आदेश जारी हुए। जेलों के संचालन में कुल 2,13,20,168 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 1,306 रूपये था वर्ष के अंत में कुल बंदियों की संख्या बढ़कर 16,760 हो गई थी। वर्ष में बंदियों की कुल दैनिक औसत संख्या 16,317 थी। वर्ष के दौरान जेलों से 17 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं।
वर्ष 1974-75 के अंत में जेलों की संख्या 61 ही रही। दिनांक 02-10-74 से जिला जेल प्रथम श्रेणी भोपाल को केन्द्रीय जेल में एवं उप जेल शहडोल को जिला जेल द्वितीय श्रेणी में क्रमोन्नत किया गया। वर्ष 1974-75 में कुल 379 बंदियों के प्रोबेशन मुक्ति प्रकरणों पर परिवीक्षा मंडल द्वारा विचार किया गया। मंडल की सिफारिश को मान्य करते हुए शासन आदेशानुसार कुल 127 बंदियों को प्रोबेशन पर मुक्त किया गया। जेलों के संचालन में कुल 2,63,06,913 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी खर्च 1,569 रूपये था वर्ष के अंत में कुल बंदियों की संख्या 16,216 हो गई थी। वर्ष में बंदियों की कुल दैनिक औसत संख्या 16,765 थी। वर्ष के दौरान जेलों से 10 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं।
वर्ष 1977 में प्रथम बार प्रदेश स्तर पर पूर्व जेल मंत्री श्री वेदराम की अध्यक्षता में जेल सुधार आयोग का गठन किया गया। उस समय प्रदेश में जेलों की कुल 65 संख्या थी। वर्ष 1977 में प्रदेश में 6 सर्किल थे तथा केन्द्रीय जेलों की संख्या भी 6 गई थी। दो जिला जेलों प्रथम श्रेणी रीवा एवं भोपाल का केन्द्रीय जेल में उन्नयन किया जा चुका था। सर्किल जेलों का विवरण इस प्रकार है:-
1 जबलपुर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
जबलपुर, |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
2 |
सागर, बोर्स्टल स्कूल नरसिंहपुर |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
4 |
छिंदवाड़ा, दमोह, सिवनी, बैतूल |
सब जेल |
3 |
बालाघाट, मंडला, नरसिंहपुर |
2 रीवा सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
रीवा, |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
--- |
--- |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
2 |
छतरपुर, शहडोल |
सब जेल |
3 |
नागोद, पन्ना, बुढ़ार |
खुली जेल |
1 |
लक्ष्मीपुर (पन्ना)
|
3 रायपुर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
रायपुर, |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
2 |
बिलासपुर, जगदलपुर, |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
2 |
रायगढ़, अंबिकापुर, |
सब जेल |
4 |
बैकुंठपुर, खैरागढ़ जशपुरनगर, राजनांदगांव |
4 ग्वालियर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
ग्वालियर |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
--- |
--- |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
2 |
दतिया, टीकमगढ़ |
सब जेल |
5 |
भिंड, मुरैना, सबलगढ़, शिवपुरी, गुना |
खुली जेल |
1 |
नव जीवन शिविर मुंगावली |
5 इंदौर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
इंदौर |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
1 |
उज्जैन |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
7 |
अलिराजपुर, झाबुआ, धार, खंडवा, रतलाम, इंदौर, बड़वानी |
सब जेल |
12 |
देवास, कन्नौद, मंडलेश्वर, मंदसौर, गरोठ, जावरा, जोबट, सरदारपुर, खरगौन, महिदपुर, सेंधवा, तराना |
6 भोपाल सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
भोपाल |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
-- |
--- |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
2 |
होशंगाबाद, राजगढ़ |
सब जेल |
6 |
विदिशा, रायसेन, सीहोर, बेगमगंज, बरेली, नरसिंहगढ़ |
इस समय प्रदेश में दो खुली जेलें कार्यरत थीं, जिसमें रीवा सर्किल में खुली जेल लक्ष्मीपुर पन्ना जिले में स्थित थी एवं ग्वालियर सर्किल में नवजीवन शिविर मुंगावली तत्कालीन गुना जिले में स्थित थी। लक्ष्मीपुर खुली जेल बुंदेलखंड एवं बघेलखंड तथा मुंगावली में स्थित खुली जेल चंबल क्षेत्र के आत्मसमर्पण करने वाले दस्युओं के लिए थीं।
मध्यप्रदेश की जेलों के सुधार के संबंध में वेदराम की अध्यक्षता में गठित जेल सुधार आयोग द्वारा अपनी 34 अध्यायों की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जिसमें जेलों से संबंधित प्राय: समस्त बिंदुओं को सम्मिलित किया गया जो इस प्रकार हैं।
- मध्यप्रदेश की जेलों में ओवर क्राउडिंग की समस्या अत्यधिक है जिस पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
- जिन स्थानों पर सेशन कोर्ट संचालित हैं वहां जेल भी होना चाहिए।
- जेल के अंदर कम स्थान एवं व्यय की बचत हेतु डबल स्टोरी बैरकों का निर्माण किया जाए।
- आदतन बंदी, विचाराधीन बंदी, कम सजा अवधि वाले बंदी तथा राजनैतिक बंदियों को रखने हेतु अलग-अलग वार्डस का निर्माण किया जाए।
- जेलों पर बंदियों के विकास हेतु शैक्षणिक, सामाजिक, नैतिक, स्वास्थ्य, मनोरंजन, व्यावसायिक शिक्षा के समन्वित कार्यक्रम संचालित किए जाएं।
- जेल लाइब्रेरी में सुधार किया जाए।
- जेल उद्योग में सुधार किया जाए।
- खुली जेलों को बढ़ाया जाना चाहिए।
- अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 की उपयोगिता को देखते हुए इसे प्रभावी रूप से लागू किया जाए।
- प्रशिक्षण के लिए लखनऊ की तरह मॉडल जेल यहां भी बनाया जाना चाहिए। इस हेतु, जिला जेल द्वितीय श्रेणी इंदौर को चिन्हित किया गया।
- अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भर्ती के बाद एवं पदोन्नति से पूर्व, महाराष्ट्र राज्य की भांति, परीक्षा ली जाए।
- मध्यप्रदेश के जेलर एवं वरिष्ठ जेल अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए राज्य में एक क्षेत्रीय जेल संस्थान प्रारंभ किया जाए।
- प्रदेश को सुरक्षा एवं प्रशासन की दृष्टि से विभिन्न जोनों में बांटा जाए।
- गैर सुरक्षा संवर्ग के अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।
वर्ष 1982-83 के अंत में जेलों की संख्या 66 थी। वर्ष 1982-83 में अधूरे निर्माण कार्यों को पूर्ण करने के लिए 44.40 लाख रूपये की राशि स्वीकृत थी परंतु गत वर्षों के अधूरे कार्यों को पूर्ण करने परआलोच्य वर्ष में कुल 52.42 लाख रूपये व्यय हुए। निर्माण कार्यां के अंतर्गत जेलों पर पेयजल व्यवस्था, विद्युत व्यवस्था, फ्लश पाखानों और अतिरिक्त बैरकों का निर्माण सम्मिलित है। शाजापुर और सतना में 2 नई जेलों का निर्माण कार्य प्रगति पर रहा। बंदियों को दी गई सुविधाओं में 5 के स्थान पर 13 त्योहारों पर विशेष भोजन और हवालातियों को भी प्रात:कालीन चाय व नाश्ता देना शामिल किया गया। हवालातियों को प्रात:कालीन चाय व नाश्ते की सुविधा पूर्व में अलग से उपलब्ध नहीं थी। बंदियों को नहाने का साबुन, बालों व सिर में लगाने हेतु सरसों का तेल, महिला बंदियों कें लिए सेनेटरी पेड्स, जेल-अस्पतालों में लोहे के पलंगों की व्यवस्था और इनके पास बेड साइड लॉकर्स की व्यवस्था करना भी शामिल है। केन्द्रीय जेल, जबलपुर प्रशिक्षण केन्द्र में वर्ष 1982-83 में 50 कर्मचारियों को नियमित और 61 कर्मचारियों को प्रत्यास्मरण प्रशिक्षण दिया गया। वर्ष 1978-79 में कुल 1,16,004 बंदी, वर्ष 1979-80 में कुल 1,00,767 बंदी, वर्ष 1980-81 में कुल 1,15,450, बंदी वर्ष 1981-82 में कुल 1,32,954 बंदी तथा वर्ष 1982-83 में कुल 1,27,997 बंदी दाखिल हुए। वर्ष के अंत में राज्य की जेलों में कुल 17,788 बंदी परिरूद्ध रहे। बंदियों की देखभाल तथा भरण-पोषण पर कुल 6,14, 53, 978 रूपये व्यय हुए और प्रति बंदी वार्षिक औसत व्यय 3,508 रूपये रहा। वर्ष में बंदियों की देखभाल तथा भरण-पोषण पर कुल 4,37,94,723 रूपये व्यय हुए थे और प्रति बंदी वार्षिक औसत व्यय 2,552 रूपये रहा था। मध्य प्रदेश राज्य की जेलों में बंदियों की देखभाल तथा भरण-पोषण पर हुए व्यय की तुलना अन्य राज्यों से व्यय से करने पर कुद उल्लेखनीय तथ्यों की ओर ध्यान आकर्षित होता है।
उड़ीसा में कैलेंडर वर्ष 1982 में बंदियों की दैनिक औसत संख्या 6706.33 थी इस जबकि मध्य प्रदेश में वित्तीय वर्ष 82-83 में यह 17516.50 रही। वर्ष 1982 में जहां उड़ीसा राज्य में बंदियों का वार्षिक औसत व्यय 3872.67 रूपये था वहीं मध्य प्रदेश में 3508.35 रूपये रहा। 1982 में बंदियों की देखभाल तथा भरण पोषण पर प्रतिदिन प्रति बंदी औसत व्यय उड़ीसा राज्य में 10.61 रूपये था वहीं मध्य प्रदेश में यह केवल 9.61 रूपये ही रहा। वर्ष के दौरान जेलों से कुल 13 फरारी की घटनाएं हुईं जो वर्ष 1980-81 में हुई कुल 03 फरारी से 10 अधिक थीं। वर्ष में 267 बंदियों के परिवीक्षाधीन मुक्ति प्रकरणों पर विचार किया गया जिनमें से 54 बंदियों को परिवीक्षाधीन मुक्ति का लाभ देते हुए जेलों से मुक्त किया गया और 41 बंदियों के प्रकरण अस्वीकृत किए गए तथा 172 बंदी प्रकरण विभिन्न अवधियों के लिए स्थगित किए गए। वर्ष के दौरान कुल 55 बंदियों की मृत्यु हुई जो वर्ष 1981-82 की मृत बंदी संख्या 87 की तुलना में कम थी।
वर्ष 1982-83 के अंत में जेलों की संख्या बढ़कर 67 हो गई। बस्तर जिले के अंतर्गत कांकेर में सब जेल प्रारंभ की गई। केन्द्रीय जेल, जबलपुर के परिसर में प्रहरियों एवं मुख्य प्रहरियों को नियुक्ति एवं सेवाकाल में प्रशिक्षण देने हेतु पृथक से एक प्रशिक्षण केन्द्र भी कार्यरत था जिसे जेल-बंदियों द्वारा वर्ष 1961 में निर्मित किया गया था। यहां आने वाले प्रशिक्षाणार्थियों के लिए अलग से निवास व्यवस्था नहीं है। वे जेल के एक भाग में बने दो बैरकों में रहते हैं। वर्ष में 47 प्रहरी कर्मचारियों को नियमित और 63 प्रहरी कर्मचारियों को प्रत्यस्मरण प्रशिक्षण प्रदान किया गया। वर्ष के प्रारंभ में राज्य की सभी जेलों में सभी प्रकार के कुल 1,57,260 बंदी परिरूद्ध हुए। वर्ष के अंत में प्रदेश की जेलों में कुल 17,872 बंदी परिरूद्ध रहे। राज्य में जेलों की बंदियों की आवासीय क्षमता, 13,254 थी, जो अपेक्षाकृत बहुत कम थी। इसका कारण, बंदियों की दैनिक औसत संख्या का आवासीय क्षमता से बहुत अधिक होना है, जो वर्ष 1983-84 में 17,498 रही तथा गत वर्ष 1982-83 से कुछ ही अर्थात 17.68 कम रही। केन्द्रीय जेल, भोपाल में दिनांक 20.10.1983 से वाशिंग पाउडर उत्पादन उद्योग आरंभ किया गया। वर्ष 1983-84 में समस्त जेल उद्योगों में कुल 39,37,959 रूपयों का उत्पादन एवं 39,97,987 रूपयों की बिक्री की गई। वर्ष के दौरान जेलों से कुल 16 फरारी की घटनाएं हुईं। पिछले वर्ष (1982-83) में 55 बंदियों की मृत्यु हुई थी जो इस वर्ष बढ़कर 75 हो गई । वर्ष में कुल 4,624 बंदी जेल अस्पताल में दाखिल किए गए। बंदियों की देखभाल तथा भरण-पोषण पर कुल 6,09,25,775 रूपये खर्च हुए। प्रति बंदी वार्षिक औसत व्यय 3,481 रूपये रहा।
वर्ष 1984-85 में सब जेल, मैहर प्रारंभ की गई। इस प्रकार वर्ष के अंत में जेलों की संख्या 68 हो गई। प्रशासन की दृष्टि से इन जेलों को दो रेंजों में बांटा गया। पहली पूर्वी रेंज जिसमें जबलपुर, रायुपर और रीवा सर्किल की जेलें तथा दूसरी पश्चिमी रेंज जिसमें इन्दौर, ग्वालियर और भोपाल सर्किल की जेलें थीं। मुख्यालय में पदस्थ दो जेल उप महानिरीक्षकों को एक-एक रेंज की जेलों का कार्यभार सौंपा गया। उनका यह उत्तरदायित्व रहा कि वे वर्ष में कम से कम एक बार इन जेलों का निरीक्षण करें और समस्याओं का समाधान जेल महानिरीक्षक एवं अतिरिक्त जेल महानिरीक्षक के मार्गदर्शन में करें। शाजापुर और सतना में 2 नई जेलों का निर्माणाधीन थीं। बंदियों के रहन-सहन में सुधार हेतु उन्हें पिछले वर्ष प्रदान की गई अनेक अतिरिक्त सुविधाएं इस वर्ष भी दी जाती रहीं। यथा,
1. भोजन व नाश्ते के अतिरिक्त हवालातियों सहित समस्त श्रेणियों के बंदियों को सुबह-शाम चाय।
2. सिर में लगाने के लिए सरसों-तेल।
3. नहाने का साबुन।
4. एक वर्ष की सजा एवं अधिक सजा वाले बंदियों को वर्ष में एक जोड़ चप्पल
5. बिस्तर के साथ दो चादर व आवश्यकतानुसार कम्बल।
6. कपड़ों की सफाई के लिए सर्फ और साबुन।
7. चड्डी और आधी आस्तीन की कमीज के साथ पजामा और पूरी आस्तीन की कमीज।
8. वर्ष में 13 त्यौहारों पर विशेष भोजन एवं प्रत्येक रविवार को हलुवा।
9. किशोर बंदी संस्था, नरसिंहपुर में परिरूद्ध किशोर बंदियों को 150 मिली लीटर दूध।
10. प्रत्येक बंदी के लिए दो बनियानें।
11. प्रत्येक बंदी को कंघा।
12. महिला बंदियों के लिए पेटीकोट, ब्रेसरी और सेनीटरी पेड्स।
13. केन्द्रीय, खुली तथा प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी जिला जेलों में श्रम करने वाले बंदियों को नियमानुसार पारिश्रमिक योजना में सम्मिलित किया गया।
14. जेल अस्पतालों के लिए पंलग, मच्छरदानियां और बेड साइड लाकर्स।
15. बंदियों को अस्पताल जेल जाने व लाने हेतु केन्द्रीय, खुली जेलों एवं प्रथम श्रेणी जिला जेलों के लिए जीप वाहन और प्रत्येक द्वितीय श्रेणी जिला जेलों के लिए मेटाडोर की व्यवस्था।
वर्ष के दौरान केन्द्रीय जेल, जबलपुर के परिसर में संचालित प्रशिक्षण केन्द्र में 64 कर्मचारियों को 5 माह का नियमित और 70 कर्मचारियों को 2 माह का प्रत्यास्मरण प्रशिक्षण दिया गया। 09 अगस्त 1983 को प्रशिक्षण हेतु प्रशिक्षण स्कूल लखनऊ भेजे गए 9 सहायक जेलर मई 1984 में प्रशिक्षण प्राप्त कर वापस लौटे। वर्ष के दौरान प्रदेश की विभिन्न जेलों में कुल 1,30,517 बंदी दाखिल हुए। वर्ष के अंत में जेलों में कुल 16,989 बंदी शेष रहे। पिछले वर्ष 1983-84 के अंत में प्रदेश की जेलों में कुल 17,872 बंदी परिरूद्ध रहे। जेलों की बंदी आवास क्षमता 13,254 थी जिसके विपरीत बंदियों की दैनिक औसत संख्या 17,464 थी। वर्ष में विभिन्न बीमारियों के कारण 30 बंदियों की मृत्यु हुई। वर्ष के दौरान जेलों कुल 17 फरारी की घटनांए 04 जेल के अंदर तथा 13 बाहर से हुईं। वर्ष बंदियों की देख-भाल तथा भरण-पोषण पर कुल 6,92,73,530 रूपये व्यय हुए। प्रति बंदी वार्षिक औसत व्यय 3,966 रूपये रहा।
प्रदेश में गत वर्ष की भांति ही इस वर्ष भी विभिन्न श्रेणियों की 68 जेलें और एक प्रशिक्षण केन्द्र जबलपुर में संचालित था। जेलों का वर्गीकरण विभिन्न श्रेणी के बंदियों को रखने की दृष्टि से किया गया हैा जहां तक संभव होता था कम सजा प्राप्त बंदियों को उनके क्षेत्र की जेल में रखा जाता था। विभिन्न जेलों में निम्नानुसार बंदी नियमानुसार रखे गए:-
1. आजीवन कारावास की सजा प्राप्त बंदी केन्द्रीय जेलों में।
2. 10 वर्ष तक की सजा प्राप्त बंदी जिला जेल प्रथम श्रेणी में।
3. 3 वर्ष तक की सजा प्राप्त बंदी जिला जेल द्वितीय श्रेणी में।
4. खुली जेलों में निम्न आधार पर बंदी रखे गए:-
(क) पांच वर्ष से अधिक परंतु 14 वर्ष से कम सजा प्राप्त बंदी, जिन्होंने बिना माफी के 1/4 सजा काट ली हो और जिनका जेल में आचरण अच्छा रहा हो।
(ख) चौदह वर्ष या इससे अधिक सजा प्राप्त बंदी जिन्होंने माफी सहित 5 वर्ष की सजा काट ली और उनका जेल में आचरण अच्छा रहा हो।
5. किशोर बंदी बंदी संस्था (बोर्स्टल इन्स्टीट्यूटर) नरसिंहपुर में 16 से 21 वर्ष तक की आयु के किशोर अपराधी जिन्हें बोर्स्टल एक्ट के अधीन निरोधित किया गया है या अन्य अपराधों में सजा प्राप्त किशोरों को रखा गया।
6. सब जेलों में साधारणत: विचाराधीन बंदी रखे गए और जो सब जेलें सुरक्षित हैं वहां तीन माह से एक वर्ष तक की सजा प्राप्त बंदियों को रखने की व्यवस्था की गई।
सप्तम पंचवर्षीय योजना 1985-90 के लिए जेल विभाग की योजना "बंदियों का कल्याण" के अंतर्गत 86.00 लाख रूपये की योजना-सीमा स्वीकृत की गई। राज्य में केन्द्रीय जेल, जबलपुर के परिसर में एक प्रशिक्षण केन्द्र अलग से कार्यरत था। प्रशिक्षण केन्द्र में मुख्य प्रहरियों एवं प्रहरयिों को शारीरिक प्रशिक्षण निर्देशक(पी.टी.आई.) तथा मिलिटरी ड्रिल इन्सट्रक्टर (एम.डी.आई.) द्वारा दिया जाता था। प्रशिक्षण के अन्तर्गत 5 माह का नियमित और 2 माह का प्रत्यास्मरण प्रशिक्षण दिया जाता है। वर्ष में 54 कर्मचारियों को नियमित एवं 72 कर्मचारियों को प्रत्यास्मरण प्रशिक्षण दिया गया। वर्ष में 1,54,470 बंदी दाखिल हुए तथा 1,36,975 बंदी जेलों से रिहा किए गए। वर्ष के अंत में प्रदेश की जेलों में कुल 17,495 बंदी शेष रहे। राज्य की जेलों में आवासीय क्षमता बंदी संख्या की अपेक्षा बहुत कम थी। कुल बंदी क्षमता 13,254 थी जबकि बंदियों की दैनिक औसत संख्या 17552 थी। वर्ष में सभी प्रकार के बंदियों की देखभाल तथा भरण-पोषण पर कुल 7,77,76,952 रूपये व्यय हुए और प्रति बंदी वार्षिक औसत व्यय 4431 रूपये तथा प्रति बंदी प्रतिदिन का औसत व्यय 12.14 रूपये रहा। जेलों में चल रही औद्योगिक इकाइयों से वर्ष में 53,29,950 रूपये का उत्पादन हुआ। वर्ष के दौरान 15 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं जो सभी जेल के बाहर से फरार हुए। वर्ष में 708 परिवीक्षाधीन मुक्ति प्रकरणों पर विचार किया गया। उन 708 प्रकरणों में से 237 बंदियों को परिवीक्षाधीन मुक्ति का लाभ देते हुए जेलों से मुक्त किया गया ओर 301 प्रकरण अस्वीकृत किए गए तथा 111 बंदी प्रकरण विभिन्न अवधियों के लिए स्थगित किए गए। इसके अतिरिक्त बंदियों को नियमानुसार अवधि पूर्ण कर लेने के बाद वर्ष में एक बार अस्थाई मुक्ति पर भी रिहा किया जाता था। शासन द्वारा इस वर्ष पारित नए विधेयक के अनुसार अब वर्ष में दो बार तक अस्थाई मुक्ति (अवकाश) पर रिहा किया जा सकेगा और परिवार में विवाह तथा मृत्यु के अवसर पर15 दिन तक आपात रिहाई भी मंजूर की जा सकेगी।
राज्य में पूर्व की भांति जेलों की संख्या 68 ही रही। आठवे वित्त आयोग में जेल प्रशासन के उन्नयन के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा 1985-86 से 1988-89 तक 4 वर्ष की अवधि हेतु कुल 51.32 करोड़ रूपये की वित्तीय सहायकता स्वीकृत की गई थी। जिसमें 101 नवीन जेल भवनों के निर्माण हेतु 2338.90 लाख रूपये का बजट प्रावधान किया गया। 1920 किशोर अपराधियों हेतु वर्तमान जेलों पर 96 बैरकों के निर्माण हेतु 438.43 लाख रूपये बजट का तथा 100 महिला बंदियों हेतु 5 बैरक के एक नवीन जेल भवन का निर्माण तथा मौजूदा 7 जेलों पर 180 महिला बंदियों हेतु 9 अतिरिक्त बैरकों का निर्माण हेतु 128.95 लाख रूपये तथा जेल कर्मचारियों हेतु वर्तमान जेलों पर 321 आई टाईप आवासगृहों के निर्माण हेतु 22.30 लाख रूपये सहित कुल 2928.58 लाख रूपये बजट का प्रावधान किया गया। उपरोक्त स्वीकृत योजनाओं में वर्ष 1986-87 में निम्नलिखित भौतिक तथा वित्तीय प्रगति हुई:- 57 जेलों का कार्य प्रारंभ हुआ, किशोर अपराधियों हेतु 96 बैरकों में से 47 बैरकों का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। 280 महिला बंदियों हेतु 14 अतिरिक्त बैरकों के निर्माण में से 9 बैरकों का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। जेल कर्मचारियों हेतु 321 आवास गृहों में से 196 आवास गृहों का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ जिस पर कुल 455.250 लाख रूपये व्यय हुआ। अष्टम वित्त आयोग के अन्तर्गत निर्माणाधीन नवीन जेल भवनों की सूची इस प्रकार है:-
क्र. |
जिला |
वे स्थान जहां पर नवीन भवन बनना प्रस्तावित है |
ऐसे स्थान जहां पूर्व में जेल बंदी की गई थी, वहां उन जेल भवनों का नवीनीकरण करके पुन: जेल प्रारंभ करना प्रस्तावित है। |
1 |
बालाघाट |
वारासिवनी |
|
बैहर |
|||
नारायणपुर |
|||
2 |
बस्तर |
दंतेवाड़ा |
|
सुकमा |
|||
3 |
भिंड |
लहार |
|
गोहद |
|||
4 |
बिलासपुर |
कटघोड़ा |
सक्ती |
कोरबा |
|
||
मुंगेली |
|||
जांजगीर |
|||
पेंड्रारोड |
|||
5 |
छतरपुर |
नौगॉंव |
|
लौंडी |
|||
6 |
दमोह |
हटा |
|
7 |
होशंगाबाद |
सोहागपुर |
|
सिवनी मालवा |
|||
पिपरिया |
|||
हरदा |
|||
इटारसी |
|||
8 |
सिवनी |
लखनादौन |
|
सिवनी |
|||
9 |
सरगुजा |
रामानुजगंज |
|
सूरजपुर |
|||
मनेन्द्रगढ़ |
|||
10 |
रायपुर |
बालोदा बाजार |
|
गरियाबंद |
|||
महासमुंद |
|||
|
|||
11 |
राजनांदगांव |
धमतरी |
कवर्धा |
|
|
डोगरगढ़ |
|
12 |
सागर |
बंडा |
|
खुरई |
|||
रेहली |
|||
13 |
रायसेन |
बरेली |
|
सिलवानी |
|||
गोहरगंज |
|||
गैरतगंज |
|||
14 |
जबलपुर |
कटनी |
|
सिहोरा |
|||
पाटन |
|||
15 |
दुर्ग |
बेमेतरा |
|
संजरी बालोद |
|||
16 |
गुना |
चाचोड़ा |
राघोगढ़ |
अशोकनगर |
मुंगावली |
||
17 |
मंडला |
डिंडोरी |
|
18 |
सीधी |
सीधी |
|
देवसर |
|||
बैढ़न |
|||
19 |
धार |
बदनावर |
कुक्षी |
धरमपुरी |
|
||
मनावर |
|||
20 |
मुरैना |
श्योपुरकलां |
|
अम्बाह |
|||
जौरा |
|||
विजयपुर |
|||
21 |
रतलाम |
सैलाना |
आलोट |
22 |
शहडोल |
ब्यौहारी |
|
उमरिया |
|||
राजेन्द्रग्राम |
|||
23 |
शिवपुरी |
करेरा |
|
कोलारस |
|||
पिछोर |
|||
पोहरी |
|||
24 |
विदिशा |
बासौदा |
कुरवाई |
लटेरी |
सिरोंज |
||
25 |
रीवा |
मऊगंज |
|
त्यौंथर |
|||
26 |
इंदौर |
सांवेर |
हातोद |
देपालपुर |
|||
महू |
|||
27 |
दतिया |
सेवढ़ा |
|
28 |
उज्जैन |
वड़नगर |
|
खाचरोद |
|||
29 |
देवास |
सोनकच्छ |
खातेगांव |
बागली |
|||
28 |
राजगढ़ (ब्यावरा) |
सारंगपुर |
खिलचीपुर |
|
ब्यावरा |
||
31 |
खंडवा |
बुरहानपुर |
|
32 |
ग्वालियर |
भांडेर |
|
डबरा |
|||
33 |
मंदसौर |
नीमच |
भानपुरा |
जावद |
मनासा |
||
नारायणगढ़ |
|||
सीतामऊ |
|||
अजयगढ़ |
|||
34 |
पन्ना |
पवई |
|
35 |
शाजापुर |
सुसनेर |
|
|
|
आगर |
|
|
|
शुजालपुर |
|
36 |
खरगौन |
महेश्वर |
बड़वाह |
कसरावद |
भीकनगांव |
||
सनावद |
|
||
37 |
टीकमगढ़ |
निवाड़ी |
|
जतारा |
|||
38 |
छिंदवाड़ा |
सौंसर |
|
अमरवाड़ा |
|||
39 |
नरसिंहपुर |
गाडरवाड़ा |
|
40 |
बैतूल |
मुलताई |
|
भैंसदेही |
|||
41 |
सीहोर |
--- |
नसरूल्लागंज |
--- |
आष्टा |
||
42 |
रायगढ़ |
--- |
धरमजयगढ़ |
|
सारंगगढ़ |
||
43 |
झाबुआ |
--- |
थांदला |
|
पेटलावद |
||
44 |
भोपाल |
--- |
बैरसिया |
उपरोक्त जेलों के अलावा भोपाल, देवास, रायसेन, पन्ना, खरगौन में भी नवीन जेलें बनाना प्रस्तावित था। वर्ष में 60 प्रहरियों को नियमित एवं 75 प्रहरियों को प्रत्यास्मरण प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
बंदियों के हित के लिए जेलों में पारिश्रमिक योजना भी लागू की गई है। बंदी को पारिश्रमिक देने का एक आधार बनाया गया जो इस प्रकार है :-
|
पूरा निर्धारित कार्य करने वाले बंदी को |
प्रतिदिन एक रूपये की दर से |
|
आधा कार्य करने वाले बंदी को |
50 पैसे प्रतिदिन की दर से |
|
जेल परिसर के भीतर या बाहर कोई भी कार्य करने वाले बंदी को |
50 पैसे प्रतिदिन की दर से |
जेल कार्य के अन्तर्गत जेल अस्पताल में कार्य करने वाले बंदी, रसोइये, नाई, धोबी, कार्यालय और भंडार गृहों में कार्य करने वाले साधारण बंदी, बागवानी करने वाले बंदी आते हैं। इसके अतिरिक्त, इस श्रेणी में बंदी शिक्षक, बंदी मिस्त्री, कनविक्ट नाईट वाचमेन, व नाईट ओव्हरसियर भी आते हैं, जिन्हें पचास पैसे प्रतिदिन के हिसाब से पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। इस श्रेणी के बंदियों को रविवार तथा जेल अवकाश के दिन पूरे 8 घंटे कार्य करने पर 0.50 रूपये और 4 घंटे कार्य करने पर 0.25 रूपये की दर से पारिश्रमिक दिया जाता था।
अपने परिश्रम से अर्जित किए इस धन को तत्संबंधी बंदियों के नाम से बैंक में खाते खुलवाकर जमा कर दिया जाता है। प्रदेश की विभिन्न जेलों में बंदियों के 1588 बैंक खाते खोले गए। वर्ष में 466 बंदियों को परिवीक्षाधीन मुक्ति का लाभ देते हुए जेलों से रिहा कर दिया गया। वर्ष में कुल 1,34,091 बंदी दाखिल हुए, तथा वर्ष के अंत में कुल 17,667 बंदी परिरूद्ध थे। वर्ष के दौरान कुल 7 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं। सभी फरारी की घटनाएं जेलों के बाहर से हुईं। वर्ष में बंदियों की देखभाल तथा भरण पोषण पर कुल 8,64,49,307 रूपये व्यय हुए और प्रति बंदी वार्षिक औसत व्यय 4854.64 रूपये तथा प्रति बंदी प्रति दिन का औसत व्यय 13.30 रूपये रहा। गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष बंदियों पर कुल व्यय 86,72,355 रूपये अर्थात 10.03 प्रतिशत अधिक व्यय हुआ। जेलों में चल रही औद्योगिक इकाइयों से 63,53,791 रूपये का उत्पादन किया गया। वर्ष 1983-84 में 1.60 लाख रूपये, वर्ष 1984-85 में 2.31 लाख रूपये तथा 1985-86 में 1.91 लाख रूपये का कृषि के अंतर्गत साग-सब्जी का उत्पादन हुआ।
वर्ष में द्वितीय श्रेणी जिला जेल,शाजापुर एवं सब जेल, बरेली को प्रारंभ किया गया इस प्रकार कुल जेलों की संख्या 70 हो गई । वर्ष 1987 में पुन: जेल मैन्युअल को अद्यतन किया गया। जेल प्रशासन को सुगम बनाने के लिए 6 केन्द्रीय जेलों को अंचल (सर्किल) जेलों में विभक्त किया गया जो इस प्रकार हैं:-
- जबलपुर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
जबलपुर |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
1 |
सागर |
जिला जेलद्वितीय श्रेणी |
3 |
छिंदवाड़ा, सिवनी, दमोह, |
सब जेल |
3 |
बालाघाट, नरसिंहपुर, मंडला, |
बोर्स्टल स्कूल |
1 |
नरसिंहपुर |
2. रीवा सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
रीवा |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
--- |
--- |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
2 |
छतरपुर, शहडोल |
सब जेल |
5 |
मैहर, पन्ना, बुढ़ार, नागोद, बिजावर |
खुली जेल |
1 |
लक्ष्मीपुर |
3. रायपुर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
रायपुर |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
2 |
जगदलपुर, बिलासपुर |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
3 |
अंबिकापुर, रायगढ़, दुर्ग |
सब जेल |
5 |
बैकुंठपुर, जशपुरनगर, खैरागढ़, राजनांदगांव, कांकेर |
4 ग्वालियर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
ग्वालियर |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
--- |
--- |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
2 |
दतिया, टीकमगढ़ |
सब जेल |
5 |
गुना, शिवपुरी, भिंड, मुरैना, सबलगढ़, |
खुली जेल |
1 |
नव जीवन शिविर मुंगावली |
5 इंदौर सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
इंदौर, |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
1 |
उज्जैन |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
8 |
इंदौर,झाबुआ,अलीराजपुर,धार, खंडवा, रतलाम, बड़वानी, शाजापुर, |
सब जेल |
12 |
देवास,गरोठ, मंदसौर,जावरा,जोबट, खरगौन, मंडलेश्वर, महिदपुर,तराना, कन्नौद,सरदारपुर, सेंधवा, |
06 भोपाल सर्किल
जेलों की श्रेणी |
संख्या |
जेलों के नाम |
केन्द्रीय जेल |
1 |
भोपाल |
जिला जेल प्रथम श्रेणी |
--- |
--- |
जिला जेल द्वितीय श्रेणी |
3 |
होशंगाबाद,बैतूल, राजगढ़ |
सब जेल |
6 |
सीहोर, रायसेन, बेगमगंज, विदिशा, नरसिंहगढ़,बरेली |
वर्ष के दौरान कुल 1,27,992 बंदी जेलों में दाखिल हुए। वर्ष 1987-88 में 1,38,096 बंदी जेलों में दाखिल हुए। वर्ष के अंत में प्रदेश की जेलों में कुल 17,857 बंदी शेष रहे। वर्ष1987-88 के लिए में 18,925 बंदी शेष थे। वर्ष के दौरान 3 जेलों के अंदर से तथा 24 बंदी जेलों के बाहर से कुल 26 बंदी फरारी की घटनाएं हुईं। वर्ष में जेल बगीचों/खेतों में कार्यरत औसत बंदी संख्या 338 थी तथा कृषि कार्य के अंतर्गत कुल 4,44,671 रूपये का उत्पादन किया गया। वर्ष में 106 बंदियों की मृत्यु हुई। दैनिक औसत संख्या पर प्रति हजार मृत्यु संख्या का अनुपात 6 था। वर्ष में प्रदेश की जेलों से कुल 14,826 दंडित बंदी रिहा हुए और उनमें से विभिन्न सजाओं के 1,680 दंडित बंदी माफी पाकर अर्थात रेमिशन पद्धति का लाभ उठाकर, सजा समाप्ति के पूर्व ही कुल 1680 बंदी रिहा किए गए। मध्य प्रदेश बंदी परिवीक्षाधीन सम्मोचन अधिनियम, 1954 के अधिनियम के अंतगर्त कुल 264 बंदियों को मुक्त करने हेतु स्वीकृत प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त जेल मैन्युअल के नियम 360 के अधीन बंदियों को अपने परिवार के साथ सम्पर्क बनाए रखने के लिए 10 दिन का अवकाश स्वीकृत किया जाता है और इसे पैरोल नाम से जाना जाता है। इस प्रणाली को और उदार बनाकर अधिक सुविधा देने की दृष्टि से बंदी संशोधन अधिनियम, 1985 पारित किया गया है। इसके अन्तर्गत बंदी को अब दो प्रकार की छुट्टी स्वीकृत करने का प्रावधान किया गया । पहला, वर्ष में कुल 21 दिन तक की छुट्टी स्वीकृत की जा सकेगी और दूसरा, आपात छुट्टी जो 15 दिन से अधिक नहीं होगी।